LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

बच्चे का साल मे दो जन्मदिन


मैं आपसे एक प्रश्न करता हू आप सोच कर ज़वाब दीजिएगा क्या आपके एक ही बच्चे का एक ही साल मे दो जन्मदिन आता है लगता है आप सोच मे पड़ गये ..... इतना सोचने का नही है हमारे बिहार, झारखंड मे कई बच्चों के एक ही साल मे दो जन्मदिन होते है उनके स्कूल के रिकार्ड मे उनका जन्मदिन कुछ और दर्ज़ होता है जबकि बच्चे का वास्तविक जन्मदिन कुछ और होता है अमूमन ज़्यादतर माता-पिता स्कूल मे दाखिला के वक़्त बच्चे का उम्र कुछ घटा देते है.

शनिवार, 24 अक्तूबर 2009

क्या आप सीधे खड़े है?


आपने कभी ये महसूस किया है की आप सीधे खड़े नही है, आप ही नही कई लोग है जो खड़े होने पर सोचते है की वे सीधे है परंतु 90 डिग्री की स्थिति मे 5 मिनट भी खड़ा होना मुश्किल होता है, आप चाहे तो खुद किसी दीवाल के सीध मे अपने शरीर को खड़ा करके देखे,आप खुद महसूस करेंगे की आपका शरीर सीधा खड़ा नही है.

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

बाबा का शुभ मुहूर्त

हद हो गई इन बाबाओं की, और हमारे अख़बार वाले,चैनल वाले,इनकी तो पुछो मत सबने अपने लिए एक-एक बाबा को आरक्षित कर रखा है जो हर दिन आपको एक नई बात बताएँगे ,की कब आपको क्या करना है ...किस राशि वाले को आज क्या खरीदना है ...दीपावली पूजन के लिए शुभ मुहूर्त कब होगा .....कब नये समान खरीदें ......समान खरीदने का शुभ मुहूर्त कब है ......इतने बजे से इतने बजे तक का मुहूर्त शुभ है ....बस फिर क्या है हो गई दुकान वालों की भी चाँदी ...और ट्रैफिक भी ज़ाम हो गया ...धनतेरस मे आपको क्या खरीदना है अब आप नहीं तय करेंगे कोई बाबा किसी अख़बार मे आपके बारे मे तय कर लिख देंगे की आपको धनतेरस मे क्या खरीदना शुभ होगा और आप भी अपनी सोंच को बदल उस बाबा के कथनानुसार खरीदारी कर लेंगे ... धन्य हो हमारे बाबा जो एक बार फिर से अंधविश्वास को पुनरज़ीवीत कर रहे है ....एक दिन एसा आएगा जब बाबा आपके घर से बाहर निकलने से लेकर खाना खाने का मुहूर्त बताएँगे और आप बाबा हो ज़ाएँगे..

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

मेरे विद्वान चाचा

मेरे एक चाचा है ,एकदम से विद्वान ....वे जो सोचते है समझिए की ब्रह्मा की लकीर है इस पर कोई भी तर्क-वितर्क उनके पल्ले नहीं पड़ता लिखने के भी शौकीन है ,खूब लिखते है ...अच्छे लेखकों में गिने ज़ाते है खूब छपते भी है लिखते वक़्त दिमाग़ सातवें आसमान पर रहता है और छपने बाद सीना फुलाए सिर उँचा कर इस कदर घूमते है की जैसे मैदान मार लिया हो , मुहल्ले में ,समाज मे सभी लोग डरते है ..........और मेरे चाचा आपनी ज्ञान को हमेशा नाई की दुकान, पान की दुकान पर बाँटते चलते है ....आप उनसे इस संसार, इससे हट कर यदि कोई और भी संसार हो उस पर भी किसी भी विषय पर बातें करे आपको चाचा हाज़िर ज़वाब मिलेंगे पर एक दिन बड़ा दुखद समाचार हो गया मेरे चाचा को उनके चाचा मिल गये बड़ी लंबी मुलाकात का दौर रहा वाद-विवाद से लेकर ज़ूतम-पैज़ार तक की नौबत आई अंततःचाचा को औक़ात पता चल गया,अभी वे कोपभवन मे हैं .

गुरुवार, 16 जुलाई 2009

जनता दरबार

कल यानि १५ जुलाई को झारखण्ड के राज भवन के बिरसा मंडप में माननीय राजपाल महोदय के द्वारा 'जनता दरबार' का आयोजन किया गया,राज्य के लगभग सभी बड़े अधिकारी इसे सफल बनाने के लिए वहां मौजूद थे परन्तु आज के अख़बारों को हम यदि देखे तो पाते है की किसी भी फरियादी का कोई भी फरियाद तत्काल जनता दरबार में सुनवाई नहीं हुआ राज्यपाल महोदय द्वारा स्वय फरियादियों से उनके पास जाकर आवेदन लिए गए, सभी आवेदन पर ७ दिनों के अन्दर करवाई करने को कहा गया. अब सवाल ये उठता है की क्या वाकई ७ दिनों के अन्दर सचमुच करवाई हो जायेगी, क्या सरकारी तंत्र का घोड़ा इतनी तेज़ दौड़ पायेगा ये तो ७ दिनों के बाद ही पता चलेगा परन्तु एक सवाल बारबार मेरे मन में उठता है की समूचे सरकारी तंत्र के मौजूद होने के बाद भी ७ दिन या ७ घंटे क्यों,सारा विभाग वहीँ है तो तुंरत निबटारा क्यों नहीं. न्याय और आस लेकर बड़ी दूर - दूर से लोग खाली पेट आते है, घंटो इंतजार करते है की मेरी समस्या सुनी जायेगी मुझे न्याय मिलेगा पर बस वे और उनकी समस्या या कभी उनके फोटो अख़बारों में छप कर सिमित हो जाते है नाम जनता दरबार होता है जनता आस लागए आते है और निरास होकर जाते है

बुधवार, 15 जुलाई 2009

मिलावट का धंधा

मुझे लगता है की हम लोग धीरे-धीरे विनाश की तरफ बढ़ते जा रहे है, हम मनुष्य का लालचपन ही हमारा विनाश का कारण बनेगा अभी-अभी इंडिया टी वी पर न्यूज़ में देखा की विदेशी सेव जिसकी कीमत बाज़ार में १४० रूपये किलो है उसके उपरी परत पर मोम लगा हुआ है जो स्वस्थ्य की लिए हानिकारक है, हमारे बाज़ारों में मिलने वाली हरी सब्जियां भी आजकल दवाओं के द्वारा पकाई और पैदा की जा रही है जिसमे हानिकारक कीटनाशक दवाओं का प्रयोग किया जाता है,चावल में पोलिश कर हानिकारक रसायन मिलाया जा रहा है घी,हल्दी,मसाला सभी खाद्य पदार्थों में मिलावट मानव के उपयोग के लिए जानलेवा है ये मिलावटी खाद्य पदार्थ जिसमे मिश्रित हानिकारक रसायन धीरे-धीरे मनुष्य को कमजोर कर रही है और हमारी सरकार सोयी हुई है जबकि मिलावटी खाद्य को पकड़ने की लिए सरकारी विभाग है परन्तु विभाग कर्मियों की लापरवाही मिलावटी के रोज़गार को बढावा दे रही है जिसके वज़ह से सारे देश में मिलावट का धंधा खूब चल रहा है

क्या कहूँ कुछ समझ नहीं आता
क्या खाऊ कुछ समझ नहीं आता
क्या बच्चों को खिलाऊ
समझ नहीं आता
मेरी थाली से
दाल गायब हो गया
हरी सब्जी दिखाई नहीं पड़ती
मेरी कमाई वही की वही है
पर
घर खर्च नहीं चल पता
रहड दाल ८५ रुपैया
आलू २० रुपैया
कोई भी सब्जी २० रुपैया से कम नहीं


बुधवार, 3 जून 2009

कचहरी नामा (४) एक परिवार है कचहरी

कचहरी वह जगह है जहाँ शादियाँ भी होती है और तलाक भी मिलता है निसन्तानोँ को बच्चे गोद मिलते है तो उम्रदराज़ वृद्धों को वृद्धा पेंशन प्राप्त होता है इस तरह कचहरी किसी पाक परिवार की तरह है जहाँ खुशियाँ और गम दोनों बसते है।
परन्तु एक नाम है कचहरी, जो दिलों-दिमाग में खौफ को पैदा करता है जो कभी कचहरी नहीं गए हो उनके दिमाग में ये बात हमेशा बैठी रहती है कि कचहरी में सिर्फ गलत लोग ही जाते है कचहरी में कदम रखना यानि अपनी इज्ज़त का फतुदा निकालना होता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं होती कचहरी में भी इसी ग्रह के प्राणी रहते है कोई अन्तरिक्ष से आकर किसी के इज्ज़त या प्रतिष्ठा को हर नहीं लेता बल्कि आप पर लगे किसी ऐसे इल्जाम जो जाने अनजाने आपसे हो गया हो या नहीं भी हुआ हो पर आपका नाम उसमे शामिल हो गया हो तो समाज में आपकी खोई प्रतिष्ठा, इज्ज़त को वापस लाता है कचहरी।
हम बात कर रहे थे शादियों की ......आपने कई बार सुना होगा की किसी के घर वाले शादी के लिए राजी नहीं थे तो उनलोगों ने कोर्ट में शादी कर ली या मजाक में कहते होंगे की कोर्ट मैरिज कर शादी का खर्चा बचाऊंगा ...कोर्ट में शादियाँ होती है स्पेशल मैरिज एक्ट के तहद जिसमे कोई भी बालिग लड़का-लड़की स्वेच्छा से तीन गवाहों के साथ उपस्थित हो कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन दाखिल कर ३० दिनों उपरांत विवाह कर सकता है तथा विवाहित भी,कोर्ट में आवेदन कर मैरिज सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते है वैसे भी आजकल विदेशों में नौकरी कर रहे विवाहित लोगों को मैरिज सर्टिफिकेट देना पड़ता है
इसी तरह इस संसार में कई ऐसे लोग है जो अपने विवाहित जीवन के बंधन से खुश नहीं है उनके जीवन साथी उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं है वैवाहिक जीवन में विवाद है,विवाह के बंधन को तोड़ना चाहते हो उनके लिए फैमिली कोर्ट है जहाँ वे विवाह विच्छेद के लिए आवेदन दे सकते है इसके लिए किसी वकील को नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं है परन्तु चाहे तो वकील की सलाह ले सकते है .......
.परिवार के ऐसे लोग खास कर पत्नी, संतान,माता-पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो, अपनी भरण-पोषण के लिए दावा कर सकते है ......
जिनको संतान नहीं है और किसी अनाथ या अन्य को गोद लेकर दत्तक पुत्र या पुत्री बनाना चाहते हो तो कानूनी प्रक्रिया पूरा कर गोद ले सकते है .......
आगे के लेख में हम जारी रखेंगे कोर्ट मैरिज,विवाह विच्छेद,भरण-पोषण के लिए दावा,दत्तक पुत्र या पुत्री को कैसे प्राप्त कर सकते है उसके लिए कानून की प्रक्रिया क्या है .......
चलिए हम मिलते रहेंगे .....अच्छा लगे तो समर्थन कर हौसला बढाइये ,टिप्पणी कीजिये ख़राब हो तो भी टिप्पणी करे कचहरी नामा के सफ़र का आनंद लेते रहें


मंगलवार, 2 जून 2009

कचहरी नामा(३)पेशकार से पंगा

बड़ा ही मज़ेदार किस्सा है ये कचहरी का आप को सोच कर हंसी भी आयेगे और चिराग तले अँधेरा भी दिखाई देगा. कचहरी में पेशकार एक नाम है जिससे कई बार वकील भी खौफ खाते है ये सरकारी नौकर है जो किसी भी प्रकार का दया ना करने की कसम खा कर ही अपनी कोर्ट की दिनचर्या की शुरुवात करते है प्रत्येक हजारी पर इनका चढावा फिक्सड होता है चाहे हजारी पर सीनियर वकील साहेब का हस्ताक्षर हो या किसी जूनियर का प्रत्येक हजारी पर मिलने वाली राशि इनकी बपौती होती है शायद ही ऐसा कोई पेशकार हो जिसने चढावा नहीं लिया हो ........ये तो मैंने बताना भूल ही गया की यदि आप कोर्ट में उपस्थित होते है तो हजारी देनी होगी अन्यथा टाइम पिटिसन देना होता है सुबह-सुबह टाइम पिटिसन देख पेशकार किस तरह का मुंह बनाते है इसकी आप कल्पना कीजिए क्योंकि टाइम पिटिसन में पेशकार को चढवा नहीं चढ़ता बल्कि वकील साहेब की जेब से ५ रूपये का टिकट पिटिसन में देना पड़ता है ............मै बात कर रहा था उस मज़ेदार घटना की जब एक केस में कई मुलजिम थे परन्तु सबके सब होशियार उनकी नियत रहती थी की किसी तरह वकील का फीस मार ले इसके लिए सभी एक साथ हाज़िर नहीं होते कोई एक-दो आता बाकी के गायब हो जाते वकील की फीस मार -मार कर इनकी आदत ख़राब हो चुकी अब इनकी नियत पेशकार के चढावा पर आ गई दो डेट पिटिसन पर दे मारी पेशकार बिना चढावा के पूजा पर क्रोधित थे, उसने पुरे केस का स्टडी किया और पाया की मुलजिम उसे वकील की तरह मासूम समझ रहा है अब बारी थी पेशकार की, उनको औकात बताने की...... इस डेट में जैसे ही बिना चढावे के मुलजिम आकर पिटिसन दिए की पेशकार ने कहा रुको तुम लोगों का वारंट निकला हुआ है ...वारंट सुनते ही मुलजिमों की सारी चतुराई धरी की धरी रह गई क्योंकि वारंट का सीधा सा अर्थ मेहमान बन लाल घर की सैर करना होता है जो कोई भी शरीफ आदमी नहीं चाहेगा उन्होंने मासूम स्वर में कहा हमारे वकील ने तो नहीं बताया पेशकार चट बोल उठा वकील को पैसे देते हो .........नहीं न फिर फोकट में कितनी पैरवी करेंगे ......मुलजिम भागे-भागे वकील के पास गए वकील बेचारा सीधा साधा बोले वारंट तो नहीं था पिछली बार भी मैंने पैरवी की थी वकील मुलजिम के साथ पेशकार के पास पहुँच माजरा पूछे तो पेशकार का ज़वाब था आपके मुव्वकिल ने भारत सरकार को उलट दिया है और साथ ही ये भी कहा की ये लोग बिना चढावा के ही दर्शन कर पुण्य पा रहे है इन लोगों को सरकारी मेहमान बनाना चाहता हूँ कह कर इनलोगों के द्वारा दिया गया पिटिसन को दिखाया जिस पर चिपकाया गया कोर्ट फी उल्टा चिपका था जिस कारण कोर्ट फी पर मुद्रित अशोक स्तम्भ उल्टा था मुलजिमों ने पेशकार के वारंट की धमकी की अच्छी खासी कीमत चुकाई और पेशकार से पंगा न लेने की कसम खा अपनी जान बचाई ....चलिए हम मिलते रहेंगे .....अच्छा लगे तो समर्थन कर हौसला बढाइये ,टिप्पणी कीजिये ख़राब हो तो भी टिप्पणी करे कचहरी नामा का सफ़र चलता रहेगा आप भी यात्रा का आनंद लेते रहें

मेरा ब्लॉग पीछे क्यूँ

मेरा ब्लॉग कई दिनों से १३ घंटे पीछे चल रहा है मैं अपना ब्लॉग कचहरीनामा (२)दर्द की दवा १ जून को सुबह ९.३८ पर पोस्ट किया परन्तु मेरे ब्लॉग पर यह रविवार ३१ मई रात्रि ८.२७ दर्शाता है ऐसा क्यूँ होता है ...क्या ये मेरे साथ हो रहा है या आपके साथ भी ....या फ़िर मेरे ही ब्लॉग के सेटिंग में कुछ गड़बड़ हो गई है .....आप मदद करेंगे यह पोस्ट मै मंगलवार २ जून ८.४४ सुबह को प्रेषित कर रहा हूँ देखता हूँ मेरा ब्लॉग इसे प्रकाशित कर क्या टाइम बताता है

सोमवार, 1 जून 2009

कचहरीनामा (२)दर्द की दवा

कचहरी वास्तव में एक तीर्थस्थल है जहाँ हर धर्म,मज़हब,जाति के लोगों का संगम होता है सभी अपने धर्म मज़हब को भूल दुसरे के दर्द को बाँटने की कोशिश करते है. कचहरी में ही आपसी विवादों का निराकरण होता है एक सा दर्द वाले जब एक जगह बैठते है तो उनका दर्द दूसरो के लिए दवा बन जाती है कचहरी वह ज़गह है जहाँ लोग अपने मुक्कदमे में ज्यादातर गाँव से आते है औसतन कचहरी में आने वाले मुव्वकिल, गवाहों को करीब ४० से ५० किलोमीटर का फासला तय कर आना पड़ता है जो आ गए उन्हें अगली तारीख लेकर जाना है १० बजे से शाम ४ बजे तक कब उनको कोर्ट से पुकार होगा इसकी जानकारी उनको कुछ ही दिनों में हो जाती है इतने लम्बे समय को काटने के लिए अक्सर लोग कचहरी परिसर में ही घूमते रहते है और कचहरी परिसर में होने वाली सामानों की बिक्री का हिस्सा बन जाते है. ज्यादातर कचहरी में दांतों को चमकाने वाला दंतमंजन बन्दर छाप दंतमंजन, देशी तरीकों से बना हुआ अचूक दवाएं, आँखों की रौशनी बढाने का चश्मा, अजगर के खेल जिसमे हमेशा बताया जाता है की किस प्रकार अजगर पुरे मुर्गी ,बकरे को निगल जाया करता है और निगलते हुए दिखायेंगे परन्तु खेल दवा बिक्री के साथ ख़त्म हो जाता है लोग देशी दवाओं से लेकर बन्दर छाप दंतमंजन तक खरीद कर ले जाते है सांप-नेवले का खेल देखने की लिए तो अच्छी खासी भीड़ लग जाती है गांवों में यह भी कहावत है की जो कुछ कही नहीं मिटता कचहरी में मिल जायेगा यानि कचहरी एक प्रकार का देशी ब्यापार मण्डी है जहाँ हर चीज़ बिकती है लोग खरीदते है खुश रहते है हमेशा आते है आपने काम के साथ मनोरंजन भी करते है और फिर वापस घर की तरफ कचहरी की चर्चा करते हुए लौट जाते है कचहरी के अन्दर हर शख्स की आपनी एक पहचान होती है एक नाम होता है कोई अच्छा होता है तो कोई बूरा होता है ......आगे की कड़ी में हम इसकी चर्चा करेंगे ..

रविवार, 31 मई 2009

कचहरीनामा

कचहरी यह एक नाम है जहाँ जाने के नाम से कई लोगों के पसीने छुट जाते है उनकी नज़र में कचहरी सिर्फ दागदार लोगों की ज़गह होती है परन्तु वे ये नहीं जानते की कचहरी में ही विद्वान अधिवक्ता,न्यायाधीश, जिला कलक्टर, अंचलाधिकारी पुलिस-प्रशासन के लोग आपकी सेवा में कार्यरत है ,पर आपको यह जानकर काफी आश्चर्य भी होगा की आप कचहरी कभी जाएँ या न जाएँ परन्तु आपकी कुंडली वहां पहुँच जाती है किसी के ज़न्म से मृत्यु तक का प्रमाण पत्र कचहरी में ही बनेगा तो आप पहुँच गए न कचहरी ...... चलिए मैं आपको इस कचहरीनामा के कई किस्से किश्तों में बताऊंगा काफी मज़ेदार है अब जैसे आपका मोबाईल गुम हो गया हो,शपथ-पत्र के लिए चले आइये स्कूल-कालेज में एड्मिसन लेना हो शपथ-पत्र के लिए चले आइये इस तरह किसी भी छोटी से छोटी बातों के लिए आपको शपथ-पत्र दाखिल करना होगा आप सोचते होंगे की मै सही हूँ फिर भी शपथ-पत्र क्यों तो बात साफ है भैयाजी कोई भी अफसर अपने जिम्मे कोई खतरा नहीं मोलना चाहता है इसलिए आप ही शपथ-पत्र दाखिल कर दीजिए यहीं नहीं अगर आपका दिन आज काटे नहीं कट रहा हो तो भी कचहरी में कई गुनी जादू का खेल से लेकर सांप -भालू का नाच दिखाते मिल जायेंगे कचहरी में आपके पहुँचते ही सबसे पहले दिखने वाला प्राणी कोई वकील ही होगा .....वकील....... इनके बारे में कई किस्से सुनने को मिलते है जिसमे मशहुर जुमला है की वकील कभी सच नहीं बोलता झूठ बोलने के ही पैसे लेता है इस पर कितनी सच्चाई है इसकी चर्चा हम आगे के किश्तों में करेंगे परन्तु यह एक कडुवा सत्य है की वकालत पेशा हर किसी के बस की नहीं जो सामने से बड़ा ही आसान लगता है परन्तु उसके अन्दर किसी केस के स्टडी में लगी मानसिक मेहनत सिर्फ कोर्ट में जिरह या बहस के समय ही दिखती है और एक सत्य यह भी है की वही वकील सबसे अच्छा होता है जिसके पास आप जब चाहे पहुँच जाएं आपनी समस्या बतावे और वह तुंरत समाधान भी खोज ले और बिना फीस के ही चल दे और सबसे बुरा वकील वह है जो परामर्श पर आपनी फीस लेता और आप महसूस करते है की मै बेकार ही वकील के पास गया था इतना तो मै भी जानता था परन्तु आप शायद ही यह महसूस कर पाएंगे की किसी वकील का परामर्श आपको कई अनहोनी परेशानियों से बचाता है वकील कोई मजदूर नहीं की वह आपको कुदाल-हथोडी के साथ दीवाल तोड़ता हुआ दिखेगा वकील की कलम और जुबान का जादू आपके अदृश्य परेशानियों को तोड़ डालता है वास्तव में वकील आपकी कानूनी अड़चनों, आपके परेशानियों को आपसे दूर कर आपको मानसिक शांति पहुचने वाला मसीहा का दूसरा रूप है जिसका आप कभी आदर कर सर नवाते है तो कभी मजाक उड़ते है ..............................हम मिलते रहेंगे आगे के किश्तों में

रविवार, 24 मई 2009

बिना प्याज़-लहसुन के

ये बड़ा ही मजेदार घटना है ,साथ ही एक नया तरह का मजाक जिसकी कल्पना या ब्याखा भी काफी मज़ेदार है। मेरे एक मित्र हैं मिश्रा जी ,ब्राह्मण है शुद्ध शाकाहारी ... मिश्रा जी तो खानपान में प्याज़-लहसुन ले लेते है परन्तु मैडम मिश्रा का प्याज़-लहसुन से परहेज़ है अत: घर से बाहर खान-पान नहीं करती है या कभी बाहर जाना हुआ तो एक तरह से उनका उपवास हो जाया करता है ....घटना ये है की मिश्रा जी को किसी एक बंगाली मित्र ने अपने घर शादी में दावत दी और उन्हें फैमिली संग आने को जोर दिया तो मिश्रा जी ने उन्हें स्पष्ट बता दिया की उनकी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है इस पर उनके मित्र ने बताया की उनकी दादी भी बिना प्याज़-लहसुन की है बस मिश्रा जी ख़ुशी -ख़ुशी उनके घर दावत पर पहुँच गए। खाने के वक़्त सभी लोग साथ बैठ गए खाना परोसा जाने लगा पहले चावल फिर दाल ..फिर सब्जी उसके बाद तली हुई मछली मैडम मिश्रा की थाली में रखी गई अब तो मैडम मिश्रा की हालत मछली देख ख़राब हो गई और मिश्रा जी को तो काटो तो खून नहीं वाली स्तिथी हो गई सामूहिक भोज में बैठे थे उठ भी नहीं सकते प्रतिष्ठा का प्रश्न था किसी तरह कुछ मिनट समय काट निकल चले की उनके बंगाली मित्र मिले मिश्र जी बोल उठे क्या मजाक है मैंने पहले ही कहा था की मेरी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है और तुम ये ..... उनके मित्र को कुछ समझ में नहीं आया उसने बड़ा ही मासूम स्वर में कहा हमारे खाने में तो प्याज़-लहसुन तो थी ही नहीं .... दरअसल बंगाली समुदाय में मछली को शुभ माना जाता और मछली बिना प्याज़-लहसुन के तल के बनाई गई थी और मिश्र जी बिना प्याज़-लहसुन का मतलब तो आप समझते ही है

रविवार, 3 मई 2009

आओ इस गर्मी का आनंद लें




आप कल्पना करते होंगे सर्दी के मौसम में धुप की, गर्मी के मौसम में छाया, ठंढी हवा की पर क्या आपने कभी इन दिनों हो रहे तपिस ......गर्मी का आनंद लिया है .नहीं ना ... आप गर्मी से मत घबराइये........ आनंद ले ,मौसम का आनंद ....आपने द्वारा प्राकृतिक से छेड़छाड़ करने ,नदी -नालों को बंद कर उस पर घर बना कर रहने ,पेड़ -पौधों को काटने ,तालाब को समतल मैदान बनाने धरती माता के शरीर में छेद बोरिंग कर धरती के अन्दर के पानी को बाहर निकल निर्दयतापूर्वक ख़त्म करने का आनंद का ही तो दूसरा नाम सूर्य देवता की प्रचंड प्रकोप है ये गर्मी ............उफ़ ये गर्मी ..............हाये ये गर्मी ........ ये मेरे ही शहर का नहीं पुरे देश का यही हाल है ..........कभी मेरा शहर दूसरा शिमला के नाम से जाना जाता था ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी हमारी रांची, आज सिर्फ़ राजधानी है और हमलोग राजधानी की कीमत चुका रहें है अचानक आए बढती जनसँख्या ,आबादी के साथ गाड़ियों के द्वारा फैलते प्रदुषण, हरे भरे जंगलों की जगह कंक्रीटों के उग आए नए आसियाने जिसे गर्व से हम मनुष्य फ्लैट कहते है जिधर देखो उधर नज़र आयेंगे ये नये जंगल ..............और इस जंगल बनाने की कीमत है.... धरती को छेद कर धरती के नसों में बहने वाले लहू यानि हमें जिंदा रखने वाली बेशकीमती अमृत ज़ल,पानी water या हम जो भी नाम दें निकाल लेना, बहा देना उस वक्त हम कल्पना भी नहीं करते की ये अमृत है परन्तु आज जब गर्मी चरम पर है तो हम उसी पानी के लिए तरस रहें है ......... हमारा शहर जहाँ पारा ३७ डिग्री पार करते ही वर्षा होना था गर्मी के दिनों में भी रात को सोते समय चादर की ज़रूरत पड़ती थी आज हम ४३ डिग्री पारे का आनंद ले रहे है या यों कहे की भुगत रहें है तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी ..........बड़ा मज़ा आ रहा है न तो दिन में चैन न ही रातों को ठीक से नींद आती है और ये गर्मी कहती है की बेटा या तो आनंद तो या फ़िर भुगतो हम तो गर्मी का आनंद ले रहें है आप क्या कर रहें है ...?

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

लल्लू जी काफी परेशान थे, चुनाव का वक्त था उसने काफी चुनाव देखें है पर हर चुनाव उसे एकदम नया सा लगता है , इस बार तो हर उमीदवार लल्लू जी की खुशामद में जी-हुजूरी कर रहे थे और हमारे लल्लू जी की खास कमजोरी है की किसी को नाराज़ नहीं कर सकते अत: चुनाव के दिन अपने मतदान केन्द्र में जाकर उसने सभी चुनाव चिन्हों के आगे लगे बटन को दबा दिया और बहुत खुश हो कर बाहर निकले उसके बाहर निकलते ही प्रत्याशी उनसे पूछते मुझे वोट दिया तो लल्लू जी खुशी से कहते हाँ, मैंने तुम्हारे चुनाव चिन्ह का बटन दबा दिया ...नेता भी खुश और लल्लू जी भी खुश ....क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

धन्यवाद ३६५



कल ३६५ न्यूज़ चैनल के द्वारा रांची जिला स्कूल परिसर में देश के प्रमुख दो राजनितिक पार्टी कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला स्तरके नेताओं के साथ जनता का अदालत का लाइव टेलीकास्ट किया जिसमे वर्तमान रांची के विधायक भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ज़नता के सवालों के आगे इन नेताओं के पसीने छूटते साफ दिखाई पड़ रहे थे, इनकी बेशर्मी देखिये की सवाल कुछ होता तो ज़वाब कुछ दे रहे थे बाद में इस बिन्दु पर प्रशन किया गया तो इनकी हालत ख़राब थी दोनों ही राजनितिक पार्टी सिर्फ़ एक-दुसरे पर आरोप लगा बचना चाह रहे थे परन्तु जनता के उग्र प्रश्न इनकी इनकी पोल खोलने लगी मेरे ख्याल से कल पहली बार इन्हे जनता के वजूद का अहसास हुआ होगा ................... इसके इसके भी मैं समझ सकता हूँ की ये गैंडा से भी मजबूत खाल वाले प्राणी सत्ता में आने के बाद कुछ नहीं करेंगे क्योंकि ३६५ न्यूज़ चैनल न तो प्रत्येक वर्ष इस तरह का कोई कार्य करेगा न ही उनसे प्रेरित हो कोई अन्य जनता को जागरूक करने करने के लिए प्रयास करेगा ये चुनाव की आंधी है हर रंग के हवाओं का सिर्फ़ दिखाई दिया रहना जारी रहेगा ...............................जय हिंद

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

नागपुरी फिल्म 'झारखण्ड कर छैला' का ट्रेलर



झारखण्ड में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का बनना काफी पहले से शुरू हो चुका है फ़िल्म एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आपनी बात लोगों तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है वैसे यदि हम कामर्सियल फिल्मों की बात को यदि छोड़ दे तो कई ऐसी फिल्में है या फ़िर कहें कई इसे निर्देशक है जिनकी फिल्म उनकी सोच, उनकी बौद्धिक स्तरको बताता है इन दिनों झारखण्ड में काफी फिल्में मसलन, डाक्यूमेंट्री, मनोरंजक ,एजुकेशनल, विज्ञापन फिल्म बन रही है इन्ही फिल्मों की एक कड़ी है 'झारखण्ड कर छैला' जिसे क्षेत्रीय बोली 'नागपुरी' में बनाया गया है, जिसे जल्द ही सिनेमा घरों में दिखाया जायेगा\ फिल्म का ट्रेलर आप यहाँ देख सकते है, साथ ही चाहें तो http://www.youtube.com/watch?v=Rx_lLHCcJm0पर भी देख सकते है


शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

सावधान

सावधान
तुम्हारे असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
यह ईमानदारी का रोग
कही न कही भटक रहा है
सावधान
वह एक ईमानदारी आदमी है
सावधान
उससे दूर रहों
सावधान
वह अछूत है
सावधान
उसके समीप आने से
ईमानदारी का रोग लग सकता है
सावधान
ईमानदारी लाइलाज बीमारी है
वह भूखा है
उसका परिवार भूखा है
हर रोज ये
ज्वालामुखी की तरह
निकलने को
बेचैन रहता होगा
परन्तु सावधान
कहीं
ये तुम्हे
रोगग्रस्त न कर दे
ईमानदारी का रोग न लगा दे
वैसे
बाज़ार में
ईमानदारी का एंटी वाय्टीक
भ्रस्टाचार,बेईमानी मौजूद है
बिना मोल उपलब्ध है
क्या चाहोगे
ईमानदारी?
नहीं ना
इसे बस
अपने अन्दर
असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
भटकने दो
ज्वालामुखी पनपने दो
विस्फोट कभी तो होगा
सावधान,
ईमानदारी तुम्हारी नसों में जिंदा है

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

एक था राजा

मैंने सुना था की लोकतंत्र के चार मज़बूत स्तम्भ है मैं सोचता हूँ की कैसा होगा होगा वह मज़बूत अदृश्य स्तंभ क्या चारों स्तम्भ आपस में लड़ते नहीं होंगे अगर ये लड़ते होंगे तो इनमे शक्तिशाली कौन होगा ...अगर पांचवा स्तम्भ होता तो ...मुझे लगता है पांचवे स्तम्भ शुरू में खुद को गौरान्वित महसूस करता होगा ..परन्तु बाद में शायद घमंड करता होगा अपने सर्वश्रेष्ट होते का ..यदि कोई छठा या फिर सांतवा स्तम्भ होता तो ... खैर ... बात बहुत पहले की नहीं है यही कोई दो- चार महीने पहले की होगी... एक राजा था .. लोकतंत्र का राजा ..आप आश्चर्य न करे लोकतंत्र में भी राजा होता है उसके नाम या कहें की संज्ञा अलग-अलग हो सकती है आप चाहें तो प्रधानमंत्री भी कह सकते है बात लोकतंत्र की थी और आप तो जानते ही है लोकतंत्र यानि इस देश के लोगों की यह गलतफहमी की वही सर्वेसर्वा है यानि जनता ही देश की मालिक है ..और इसी गलतफमी में वे अपनी पूरी जिंदगी ब्यातित कर देते है कभी तेजी में बढ़ी महंगाई की मार पर रोते है तो कभी विरोध होने पर कुछ दाम घटी महंगाई पर खुश होते है और महंगाई भी इनसे ऐसी दोस्ती कर चुकी है की पीछा ही नहीं छोड़ती इस देश में चूँकि लोकतंत्र है अत: राजा का भी चुनाव होता है और यही वक़्त होता है जब गलतफहमियां बढ जाती है चुनाव में खडा आदमी जब उनके पास जाता है, तो जनता सोचती है की देख मेरे से गिड़गिडा रहा है पर सचाई तो ये है की आप सिर्फ मोहरे है सामने वाला सिर्फ आपको छलावा देने के लिए नाटक कर रहा है जबकि जीत का सेहरा उनके गले होगा जिसके पास ताक़त होगी पैसे होंगे इन्ही पैसों से वह लोकतंत्र की ताज़ा नीव युवा को अपने शब्दजाल में फांश लेंगे युवा भी अभी की सोच अपनी ताक़त उसे जीताने में लगा देगा और राजा बनने के बड़े ब्यापारी अपने शब्दों में वर्तमान राजा को कूटनीति के तहद कमजोर राजा की संज्ञा से विभूषित करेंगे क्योंकि कमजोर राजा की संज्ञा ही जनता के मन में वर्तमान राजा के प्रति आशक्ति को कम करेगी जिसका फायदा हर हाल में उठाना है क्योंकि कमज़ोर और शक्तिशाली ये दो शब्द ही अलग-अलग छवि दिखाते है कोई व्यक्ति यदि कम बोलता है तो वह कमज़ोर समझा जाता है जबकि चिल्लाने वाला ताक़तवर हो जाता है और हम लोकतंत्र वाले मज़बूत, ताक़तवर पसंद करते है क्योंकि चिल्लाने वाले की भाव-भंगिमा से गूंगे-बहरे भी तैश में आ जाते है ऐसा तैश की कुछ भी तोड़ दे,विवादस्पद बना दे परन्तु कमजोर का क्या ...कही भी चुपचाप अच्छा कर रहा हो ....हल्ला ही नहीं करता.. तो पता कैसे चलेगा और यदि पता चल गया तो हम कह देंगे की दुसरे के इशारे पर करता है ..लोकतंत्र है ..कहने की, बोलने की छुट है और बाज़ार में छुट पर ही तो लुट है और ये लोकतंत्र है भैया यानि आपने को एक दिन के राजा होने ख्वाब देखने का ग़लतफ़हमी पलना जबकि बाहुबली की ही हमेशा जीत होती है उनके बिछाए शतरंज पर हम सिर्फ मोहरे हो जाते है उनकी चाह ही शाह और मात है

रविवार, 5 अप्रैल 2009

बदल दो हवाओं का रुख



इस दीये की लौ को
बुझने न दो
ये खुद को जला
दूसरो को
रौशनी देती है
इसे रौशन करो
तेज़ आँधियों को बता दो
की
हम
किसी पर्वत से कम नहीं
हमसे टकराओगे
तो खुद चोट पाओगे
हम
वो है
जो हवाओं के रुख को
मोड़ने की क्षमता रखते है



शनिवार, 4 अप्रैल 2009

शब्द


शब्द
तुम ऋचा हो
तुम वेद हो
तुम्ही रामायण
तुम्ही गीता
तुम्ही पुरान
तुम्ही कुरान
तुम्ही बाईबल
तुम्ही ज्ञान हो
गर हो अंधकार
गर हो जाऊँ
शब्दहीन
मुझे रास्ता बताना
मुझे रोशनी दिखाना
शब्द,
तुम अनंत हो
शब्द,
मुझे खुद से खेलने दो
शब्द
निचोड़ने दो
शब्द
मुझे छूने दो
शब्द
मुझे समझने दो
शब्द
मुझमें समां जाओ
शब्द
मुझे अपने में समां लो

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

बा मुलाहिज़ा होशियार..


बा मुलाहिज़ा होशियार ...आपके दरवाज़े फिर वही चेहरा रूप बदल कर आ खड़ा होगा, जिसकी धुंधली सी तस्वीर शायद आपको याद होगी ...ये वही लोग है जो पिछली बार आप से मिले थे ...बहुत पहले ...करीब पॉँच साल पहले..आपको देख कर मुस्कुराएँ थे .. आपसे गले भी लगे होंगे परन्तु उसके बाद ये अदृश्य हो जाते है ...आपसे आपकी इच्छानुसार वायदे कर आपके ज़ज्बातों से खेल ये खिलाड़ी न जाने कहाँ गायब हो जाते है ये आपको सूचना अधिकार से भी नहीं पता चलेगा ..होशियार ....होशियार ..वक़्त है पहचानने का...इनके चेहरों को पहचानिये ..ये रूप बदलने में बहुत माहिर है .....ये आपकी आवाज़ में भी बोल सकते है..आपके ब्लॉग तक पहुँच सकते है .. आपका सब ब्लोक करा सकते है .. अच्छे दूकानदार है सब कुछ बेच सकते है ..बोलने में माहिर की मुर्दा भी उठ इनके पक्ष में चलने लगे ... होशियार ..ये वही लोग है ..जिनके पास पॉँच साल पहले कुछ नहीं था परन्तु अब खरबों की सम्पति है, ये दयावान है अपनी सम्पति का कुछ हिस्सा विदेशों में भी रखते है ....हो सकता है आपसे मुलाक़ात में 'कुछ' आपको मिल जाये ......परन्तु होशियार ये गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले है आपसे फायदा दिखा तो आपके दरवाज़े नहीं तो 'युवा' है न देश की धड़कन उसका भी इस्तेमाल किया जायेगा ..मेरे देश के 'युवा' सावधान ..होशियार ...ये तुम्हारे भी नहीं है ..काम निकल जाने के बाद ये तुम्हे दूध की मक्खी की तरह निकल फेकेंगे ....उठो ..जागो ...कोई तुम्हारे कन्धों का इस्तेमाल करे उसे पलट ज़वाब दो ..जागो ..आपने मताधिकार का प्रयोग करों और दुसरो को भी प्रेरित करो ताकि आपने देश का वही रूप तुम जागते हुए भी देख सकते हो जो तुम अक्सर सपने में देखते हो ..उसी भारत की तस्वीर जब तुम बेचैन होते हो तो तुम्हे प्रेरणा देती है ...उठो ..जागो ..चाँद लोगों की उंगुलियां पर नाचने वाली कठपुतलियां मत बनो अपने मताधिकार का सही उपयोग करों,चुनाव के दिन वोट ज़रूर दो, बोगस वोटों का तुंरत वही विरोध करो .

मंगलवार, 31 मार्च 2009

आओं इस लूट में शामिल हो जाओ



जी हाँ! मेहरबान ..कदरदान ...मेजबान ... आइये ..इस खुली लूट में आप भी शामिल हो जाइये ...क्या कहा आपने ....आप शरीफ है ... और आप ..अच्छा... आप खानदानी है... और आपने क्या कहा ज़नाब ... वो तो आप फालतू बातों पे ध्यान नहीं देते ...वाकई ! मज़ा आ गया यहाँ तो सभी समझदार लोग है ...क्या कहा आपने यहाँ कोई लूट नहीं है ..मैं बकवास कर रहा हूँ ..अरे नहीं मेरे भाई जरा गौर से देखिये ..आज हमारा सरकारी खजाना खाली हो जायेगा क्योंकि आज ३१ मार्च है...सरकारी खजाने की लूट मची है ..आइये शामिल हो जाइये ..कोई भी बिल पास करा लीजिये, क्या कहा आपने ..आप ठेके का काम पूरा नहीं कर पायें और आप सड़क का .. अपने विभाग का.. शिक्षा का..वगैरह- वगैरह कोई भी काम पूरा नहीं कर पाए.. कोई बात नहीं यहाँ कागजों पर पूरा कर ले, भुगतान मिल जायेगा बस हुजुर मेरा ध्यान रखियेगा ...मेरा कमीशन..... ठीक है समझ गए न ..हाँ तो भाइयो लूट लो ...लूट लो ..क्या कहा आपने मैं गन्दा आदमी हु मेरे विचार गंदे है ..तो भैया ज़रा अपने गिरेबान में झांक कर तो देखो जब सड़कों की मरम्मती के नाम पर मिटटी भरे गए थे, अच्छी सड़कों को तोडा जा रहा था, तालाब के नाम पर तालाब बनी ही नहीं थी, हर मार्च पर सड़के बनती है और एक ही बरसात में टूट जाती है तो देख कर भी आप चुप क्यों रहते है, विरोध क्यों नहीं करते आपकी मौन उनके हौसलों को बढाती है ...गिनती के चंद लोगों की लूट में हमारा चुप रहना उसकी लूट में हमारी मौन सहमति है ..आइये ज़नाब ..मुहं खोलिए कुछ तो बोलिए विरोध नहीं कर सकते तो कम से कम चिल्लाइये तो ...या फिर १ अप्रैल को मुर्ख बन फिर से लूटने की तैयारी कीजिये

बुधवार, 25 मार्च 2009

हारा हुआ सेनापति

मैं एक हारा हुआ सेनापति हूँ ,आप हैरान हो गए...आप सोच रहे होंगे की हारता तो सिपाही है,सेनापति तो सिर्फ जीतता है क्योंकि जीतने का सेहरा सेनापति के गले होता है और हार हमेशा सैनिकों कि होती है .........मुझ हारे हुए सेनापति कि एक आपसी मानसिक युद्ध में एक टांग या फिर यूँ कहे कि एक पैर टूट गया ........आप तो जानते ही है कि हर आदमी ..नहीं यहाँ आदमी कहने से किसी को दुःख हो सकता है ..अतः मनुष्य कहता हूँ ...इसमें भी मनु का नाम आने से किसी को तकलीफ हो सकती है ...अतः क्षमा मांग लेता हूँ क्योंकि मैं अल्पकालिक अपाहिज हूँ ....हाँ तो मैं कह रहा था कि लोगों कि तरह मेरे भी दो पैर है जिससे मैं चलता हूँ, मेरे दोनों पैर मेरे शरीर के बोझ को उठाकर जहाँ मेरा मष्तिष्क कहता है वहां ले जाता है इसमें मेरे पैरों को गुलामी का अहसास नहीं होता ना हीं मेरा मष्तिष्क अपने को मालिक समझता है ....... चूँकि मेरे दो ही पैर है अतः मैंने इसका नामांकरण कर रखा है एक जिसे आप बायीं तरफ वाली या फिर दायीं तरफ वाली जिसे देखने में सुविधा हो उसे मैं सकारात्मक और ठीक इसके विपरीत दायीं तरफ वाली या फिर कहें बायीं तरफ वाली जिसे आपके देखने का कोण समझ में आता हो नकारात्मक नाम दिया... अब हुआ क्या कि एक दिन हमारी मानसिक युद्ध में मष्तिष्क का फयुज़ थोडा ऑफ हो गया और मेरा एक पैर टूट गया ..अब चूँकि बेचारा मष्तिष्क फयुज़ था अतः जब ठीक हुआ तो कन्फ्यूज़ हो गया कि टूटा हुआ पैर सकारात्मक था या फिर नकारात्मक .... खैर छोडिये ये तो मेरे मष्तिष्क का प्रॉब्लम है ....आपका मष्तिष्क ...आपकी सोच तो ठीक है ...अब आगे आप खुद ही तय कर लीजिये कि मेरा पैर कौन सा टूटा था ..और हाँ मेरे टूटे पैर पर इतना भी मग्न ना हो जाइयेगा कि आप भी लंगडाकर चलने लगे जैसा कि मेरे साथ हुआ .. अब पैर टूटा तो ज़ाहिर है की मैं डाक्टर के पास जाऊंगा ..मैं वहां गया तो पता चला की पैर की हड्डी टूट गयी है ,मैं समझा नहीं ...हम तो ठहरे देहाती मैं सोच रहा था की पैर टूट गया लेकिन यहाँ पता चला की पैर की हड्डी टूट गयी है ..अब ये पैर की 'हड्डी' क्या होती है मेरी समझ में नहीं आया और मैं सोचता ही रहा की न जाने कब मेरे पैर पर मोटी प्लास्टर की परत चढ़ा दी गई अब मेरा एक पैर दुसरे पैर से थोडा भारी हो गया था मेरे नकारात्मक या फिर सकारात्मक पर एक मोटी सी परत चढ़ गई थी ,सभी को यह परत दिखाई पड़ रही थी और हाल समाचार पूछ बैठते की भई!! कैसे पैर टूटा ....अब क्या करे मैं किसी फिल्म की तरह रिप्ले करके तो दिखा नहीं सकता लिहाज़ा मुँह से बता दिया करता था कई दिनों का यह सिलसिला रहा तो मुँह ने भी घटना का बयाँ करना बंद कर दिया सिर्फ एक हँसी (खोखली या व्यंग्यात्मक, मुझे नहीं पता था परन्तु खुल कर हँसी नहीं थी )हंस देता, सामने वाला भी समझदार .. समझ लेता था परन्तु मेरे दोनों पैर एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक समझने को तैयार हीं नहीं सकारात्मक आगे बढ़ना चाहता तो मोटी परत वाला नकारात्मक उसे बढ़ने नहीं देता क्योंकि एक तो टूटा हुआ दूसरी उस पर चढ़ी मोटी परत दोनों पैर के चलने का संतुलन नहीं बना पा रही थी मेरे शरीर का बोझ अब अकेले किसी एक को उठाना था, दूसरा चुपचाप आराम फरमाता .... डाक्टर की भी सलाह थी की घर पर ही आराम करे कहीं चलने की जरुरत नहीं है ..पर मैं ठहरा आदमी जात मेरी नैसर्गिक कुछ जरुरत थी जिसे पूरा करने के लिए कुछ कदम चलना ही पड़ता पर यह क्या मेरे सकारात्मक और नकारात्मक ने तो मुझे 'जड़' ही कर दिया दोनों में कोई एक तो ठीक था जो मेरी बोझ को अकेला उठा सकता था, लंगडा कर ही सही, घसीट कर ही सही ..पर नहीं .. दोनों चुप .. दोनों को सौतिया डाह हो गई, तब मेरे मष्तिष्क ने काम किया मालिक का आदेश गुलाम क्यों नहीं सुनेगा.. बस फिर क्या था सकारात्मक उठ खडा हुआ अपने बल पर, नकारात्मक को सहारे लेकर धीरे-धीरे परन्तु लम्बे डग लेकर एक बैसाखी के सहारे नैसर्गिक ज़रूरत के लिए चला .... मैं सोच रहा था की दुनिया कितनी तरक्की कर ली है, यदि कहीं कोई ऐसी रिंच होती की मेरे नकारात्मक या सकारात्मक जो पैर ख़राब हो उसे अपने शरीर से कुछ समय के लिए अलग कर लेता परन्तु ..... शायद ऐसी कोई रिंच अभी तक अमेरिका वालों ने भी अभी तक नहीं बनायीं है न ही चीन ने ..शायद मंदी की मार में अभी वे बना भी नहीं पाएंगे. धीरे-धीरे समय बीतते चला गया मेरा नकारत्मक या सकारात्मक ठीक होता चला गया पैर की टूटी हड्डी धीरे-धीरे जुड़ने लगी और अब सकारात्मक या नकारात्मक एक दुसरे के सहारे एक दुसरे के दर्द को झेल कर, कभी तेज़ तो कभी धीमी गति से चलने लगे कुछ ही दिनों में डाक्टर की लगाई मोटी परत नर्स ने काट दी मेरे सकारत्मक या नकारत्मक बिना किसी परत के थे परन्तु प्लास्टर होने से लगा दाग दिखाई दे रहा था मुझे पता था की कुछ दिनों में प्लास्टर के दाग मिट जायेंगे परन्तु नकारात्मक या सकारत्मक जब भी साथ चलेंगे अच्छी गति से चलेंगे, संतुलन में रहेंगे परन्तु किसी मोड़ पर सकारात्मक या नकारत्मक को दर्द होगा तो पैर टूटने की घटना याद हो जायेगी, याद हो जायेगी वो लंगडाकर चलना, एक दुसरे के सहारे आगे बढ़ना और ना चाहते हुए भी मेरे शरीर के बोझ को उठा कर चलना .....
धन्यवाद्

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

"संस्कृति"

संस्कृति मूलत: ग्रहण की जाती है जो एक पीढी से दूसरी पीढी तक स्वत:ग्रहित होती चली जाती है
मानव अपने उदभव काल से अब तक अपने जीवन पथ में कार्यों की कुशलता को ग्रहण करता हुआ उसे विशेष आकार, विशेष रूप प्रदान करता रहा है जिसे आने वाली पीढी उसे ग्रहण करती रही है, समय के बीतने के क्रम में समाज में बदलाव एवं नवीनतम वस्तुए मूर्त-अमूर्त का ग्रहण सर्वोपरि है वस्तुतः संस्कृति अदृश्य होने के बावजूद चलायमान है समाज के नवीनतम ग्रहणों का प्रभाव संस्कृति पर पड़ता है
नवीन काल चक्रों के संस्कृति पर पड़े प्रभाव की वज़ह से हमें ऐसा नहीं मानना चाहिए की उसका स्वरुप बदल जायेगा क्योंकि संस्कृति के स्वरुप में बदलाव नहीं आता उसमे आधुनिकता का समावेश हो सकता है परन्तु उसका स्वरुप वही पुरातन होगा
लोक संस्कृति वास्तव में संस्कृति का ही रूप है जो किसी सम्पूर्ण राष्ट्र की संस्कृति नहीं बल्कि प्रान्त या क्षेत्र-विशेष की संस्कृति यानि क्षेत्र- विशेष का रहन-सहन, पहनावा, बोल-चाल, खान-पान, उस क्षेत्र- विशेष का पर्व, उनकी कार्य शैली, उनके जाति विशेष का लगाव है.
किसी भी राष्ट्र की विशेष संस्कृति उनके क्षेत्र के भौगोलिक वातावरण के प्रभाव से बनती है. जो अलग-अलग क्षेत्र में अलग होती है. मैदानी क्षेत्रों की संस्कृति,पर्वतिये क्षेत्र की संस्कृति, सीमा प्रान्त की संस्कृति, समुन्द्र तटीय संस्कृति, नदी क्षेत्र की संस्कृति सभी एक दुसरे से मिली होगी और एक दुसरे से इसमें संमिश्रण भी देखने को मिलेगा क्योंकि हम जानते है की संस्कृति ग्रहण करने का नाम है और यह स्वत ग्रहण होती है तथा आसानी से सीखी जाती है.यही भिन्न-भिन्न संस्कृति लोक संस्कृति की संज्ञा प्राप्त करती है जिसके अंतर्गत उस क्षेत्र की कला, कहानी, नृत्य, नाटक, संगीत, आदि का विशेष प्रभाव होगा उसकी शैली की भिन्नता होगी जो उसकी विशेष पहचान बनती है

बुधवार, 11 मार्च 2009

अपनी होली


होली खेलने के रंग है निराले


कोई अपने ही गालों पे रंग डाले


कोई दूसरो के गालों पे रंग उडाले


फागुन में बुढ़वा बौराया


रंग डालने भौजी को दौडाया

थक गया, हाफ़ते-हाफते


दांते निपोर बोला


बुरा न मानो होली है


लड़को की टोली निकली

गाजे-बाजे के साथ


शेरों-शायरी और ...




होलियाना मूड के गानों पर


थिरकते युवा कदम


जिनकी है


अपनी ही एक अलग रंग


अरे.....


भागो... दौडो ......
पकडो .....


अरे रंग डालो ...


बुरा न मानो होली है
नाचे हर कोई अपनी ताल पे


रंग लगावें दूसरों की गाल पे


कपडा दिया फाड़


चिल्लाकर बोलें
बुरा न मानो होली है


खन्ना साहब बैठे घर पे
आयें रंग लगाने दो-चार



खन्ना बोले


यार


अपनी होली तो


महंगाई के रंग में


'हो' 'ली' है


महंगाई के रंगों में


हमने खूब खेली होली


नेताओं के आश्वाशन को


पुआ-पकोड़ी समझ खा ली


तुम्हारे रंगों का असर तो


कुछ घंटों का है


महंगाई का रंग तो भैया


छूटाये नहीं छूटेगा


वायदा कर गया है


फिर से आने का


न जाने


फिर कौन सा


गुल खिलाएगा


बुरा न मानो होली है









महंगाई और होली


महंगाई के रंग ने
कपड़े डालें फाड़
बची
लंगोटी
छिपाई
इज्ज़त
पर बोली महंगाई
कहाँ भागते हो भाई
मेरी नज़र है
तुम्हारी लंगोटी पर
अगली होली
फ़िर आऊंगा
इसको भी
उतार कर
ले जाऊंगा






मंगलवार, 10 मार्च 2009

हम किसी से कम नहीं

प्यास हमें भी लगती है भाई ....

रविवार, 1 फ़रवरी 2009

आज ऐसे दिख रहे थे साईं बाबा



पहली जनवरी २००९ के बाद आज साईं मन्दिर, लापुंग जाने का मौका
मिला,घर से मैं, दीपक और उनके जीजाजी अपने अल्टो से करीब
१.३०बजे निकले और करीब ३ बजे मन्दिर पहुचे,हम लोग रास्ते में
बातें करते चल रहे थे की आज काफी देर से मन्दिर जा रहे है प्रसाद
नहीं मिल पायेगा क्योंकि मन्दिर में दोपहर की आरती का समय १२
बजे है इसके बाद भोग प्रसाद मिलता है ..इससे पहले जब भी
हमलोग साईं मन्दिर लापुंग के लिए सुबह ९ बजे तक निकल जाते
थे ... परन्तु वह पहुचे तो मुझे काफी आश्चर्य हुआ खीर प्रसाद का
वितरण अभी तक हो रहा था ...... हमलोग साईं बाबा के दर्शन कर
प्रसाद ग्रहण करने पहुचे तो काफी प्रसन्नता हुई क्योंकि प्रसाद वितरण
सह भंडारा श्री साईं समिति, रांची के द्वारा किया जा रहा था इनसे
हमारी बात-चीत है पता चला की श्री साईं समिति, रांची के द्वारा
प्रत्येक पहले रविवार को मन्दिर में भंडारा सह प्रसाद वितरण किया
जायेगा जो इस वर्ष से शुरू किया गया है जो बड़ा ही नेक काम है ॥
इसके लिए श्री साईं समिति, रांची के सभी सदस्य बधाई के पात्र है श्री
साईं समिति, रांची के सदस्यों एवं ललित अग्रवाल की तस्वीरे साथ है





शनिवार, 31 जनवरी 2009

साईं को समर्पित

साईं को समर्पित यह विडियो जिसे कलकत्ता के नेत्रहीन कलाकारों के द्वारा श्री साईं मन्दिर ,लापुंग,रांची में प्रस्तुत किया गया था जिसकी मात्र ३ मिनट की विडियो क्लिपिंग ....जिसके धन्यवाद् के पात्र वे कलाकार है ..साईं उनकी मनोकामना पुरी करें

(ब्यंग्य) कम्बल का सच ..

रात के करीब १० बज रहे थे पूस की रात ,कड़ाके की ठण्ड थी खन्ना जी को नींद नही आ रही थी, सोचा चलो कही घूम आयें .. फ़िर क्या था खन्ना जी निकल पड़े अपनी अल्टो लेकर मेंन रोड की तरफ़ ... सड़क के किनारे अल्टो खड़ी कर दी और अल्टो से ही चारो तरफ़ छांके .. चारो तरफ़ सन्नाटा ...कुछ रिक्शा सड़क के किनारे लगे हुए थे.. रिक्शेवाला अपनी रिक्शे में ही ओढ़ मूढा कर सोया पड़ा था दो-चार कुत्ते राख की ढेर पर दुबके पड़े थे... थोडी दूर पर दो ब्यक्ति शायद भिखारी होंगे फटे चिथड़े कपड़े पहने बोरा बिछा कर सोये पड़े थे की अचानक एक लाल बती गाड़ी आती है.. मुझे आश्चर्य होता है ,इतनी रात लाल बती वाली गाड़ी ...गाड़ी के सामने देखा तो पता चला की मंत्री जी की गाड़ी थी .. मुझे लगा शायद मंत्री जी को भी नींद नहीं आ रही होगी और मेरी तरह निकल पड़े होंगे मेन रोड का जायजा लेने .. मै सोच ही रहा था की दो - तीन गाडियां ,मोटरसाइकिल भीआकर खड़ी हो गई .. ये सब देख मैं बहुत खुश हुआ की चलो इस दुनिया में मैं ही एक पागल नहीं हूँ और भी कई लोग है जो नींद नही पड़ने पड़ मेन रोड घूमते है । कार से कुछ लोग उतरते है ... अरे ये क्या .ये तो अपने प्रतिष्ठित अख़बार के प्रेस फोटोग्राफर हैं ..इन्हे तो मैं पहचानता हूँ अब मैं गौर से सभी को देखने लगा ..इनमे से कई लोग मेरे परिचित थे प्रेसरिपोटर ,फोटोग्राफर आदि .. आदि मुझे लगा शायद ये लोग अभी अखबार के दफ्तर से लौट रहे होंगे ...क्योंकि अखबार हमारे समाज के होने वाले हर खबरों को हम तक पहुचता है ..जब हम सोते है तो ये जागते है ,और रात्रि के समय ही तो अख़बार का मुखपृष्ठ सबसे अन्तिम में खास न्यूज़ का इंतजार कर छपता है। .. कितना जिम्मेवारी का काम है .. मैं सोच ही रहा था कि देखा एक पुलिस वाला आया और ज़ल्दी- बाजी में इधर उधर देखते हुए उन सोये हुए ब्यक्तियों को पैर से ठोकर मार कर उठता है उनके बीच के वार्तालाप या कहे हॉट-टाक मैं लिखकर सुनाता हूँ.... कितना अजीब बात है न .. क्या करू बोल कर तो सुना नहीं सकता न .. थोड़ा मुश्किल है पर यदि आप चाहते है की उनकी बातों को सुने तो साथ वाला विडियो देख सकते है चिंता न करे विडियो One Act Play का एक अंश है.. माफ़ करे विडियो और वार्तालाप कुछ समय बाद दिखाऊंगा ...इंतज़ार करे ...

शनिवार, 24 जनवरी 2009

बस यूँ ही ...

अगर आप इसे पढ़ रहे है, तो ये मत सोचियेगा की मैं कोई जनवादी कवि या लेखक हूँ , मैं भी उन्ही लोगो में से एक हूँ .... जनता हूँ ... सब जनता हूँ ..फ़िर भी सोया हूँ .. क्योंकि हम सोचते हैं ,की हम तो मालिक है.. हमारे बागों की रखवाली का ज़िम्मा तो हमने अपने पहरेदार को दे रखा है, पहरेदार का काम है, की पहरा करे ,कोई चोरी करता है तो पहरेदार दोषी है ... मैं क्यों ? इसी के लाभ उठाने वालों के जामत का मैं हिस्सा हूँ ..मुझे मत समझना की मैं तुम्हारा हूँ मेरे कई मुखौटे हैं उसमे तुम्हारा भी चेहरा है ...
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
दो के चार बनाना हो
या दो के बीस कर लो
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
समस्याओं को बढ़ने दो
चैन से हमें सोने दो
नेता बनना आसान है
नेतृत्व करना मुश्किल
हम जनता है
सब जानते है
तुम्हारी काली करतुतों में
हम भी साथ रहतें है
जनता सो रही है
कुछ तो खो रही है
मेरा क्या
मै तो मात्र
जनता का अंश हूँ
सब झेल रहे है
मैं भी दंश
झेल रहा हु
सब करते है
मसीहा के आने का
इंतजार
मै भी करता हु
सब कुछ ना कुछ
‘कमा‘ रहे है
मैं भी उनका अंशदार हूँ
जनता सो रही है
मौका अच्छा है
जो करना है कर लो

बुधवार, 21 जनवरी 2009

साईं मन्दिर, लापुंग फोटो २
















साईं मन्दिर,लापुंग के फोटो
















नमस्कार , आज अपने इस ब्लॉग पर मैं आपको अपने शहर से करीब ४किलोमीटर दूर स्थित लापुंग , साईं मन्दिर के कुछ फोटो दिखा रहा हूँ। उम्मीद है ,पसंद आएगी ..अगर आप कभी यहाँ आना चाहे तो आपका स्वागत है





रविवार, 18 जनवरी 2009

OFFLINE ब्लॉग लिखने केTIPS

मैं कई दिनों से यह चाहता था की अपने ब्लॉग को ऑफ़ लाइन (offline)यानि जब मेरा इन्टरनेट Disconnect हो तो भी मैं आराम से अपने ब्लॉग को लिखू एवं उसे अपने कम्प्युटर के किसी ड्राइव पर सहेज करके रखु ताकि जब मैं अपना ब्लॉग किसी कारण पुरा नही लिख पाया हूँ तो पुन: दुबारा फिर से फाइल खोल कर लिख सकूँ ,मैंने कई उपाय किए सफलता हाथ नही लगी मैंने अपने दोस्त राजीव @ भूतनाथ से भी पूछा परन्तु उसके साथ भी यही समस्या थी,इसी बीच कम्प्युटर से खेलते-खेलते मुझे उपाय मिल गया जिसे मैंने अजमाया, सफलता हाथ लगी तो सोचा क्यो न सभी को बताऊ सो यह लिखना आरम्भ किया हम सभी के कम्प्युटर में Notepad है ,उस Notepad पर हम टाइप करते है ठीक उसी तरह जैसे ब्लॉग लिखने पर हम टाइप करते है यानी राम लिखने के लिए हम ram टाइप करते है उसी प्रकार टाइप करना है फिर उसे SAVE कर देना है जिसमे encoding option में UNICODE में SAVE का लेना है फिर जब हमारा दिल चाहे हम इन्टरनेट को खोल कर अपने ब्लॉग में नए संदेश option में जाकर ब्लॉग लिखने वाले स्थान में अपने SAVE किए हुए ब्लॉग को कॉपी कर paste कर दे एवं ब्लॉग में आए उस paste को all select कर अ को चटका लगा दे,देखियेगा आपके ब्लॉग हिन्दी में आ जायेंगे . वैसे इसमे एक खामी है की संदेश वाले स्थान में ३०० से ज़्यादा शब्द एक साथ नही आते लेकिन चिंता की कोई बात नही आप ३०० शब्द ही लेकर बार - बार paste करे एवं उसे पूर्ण रूप दे पुन: इसी क्रम को दोहराए आपका ब्लॉग पुरा हो जाएगा इस तरह आप ऑफलाइन में कई कार्य एक साथ करते हुए अपने ब्लॉग को अपने मन मुताबिक पुरा कर सकते है. यह तो मेरा उपाय था अगर आपके पास कोई अच्छा उपाय हो तो हमें ज़रूर बताये.

नाटक: चरणदास चोर का मंचन


हबीब तनवीर द्वारा लिखित,संजय लाल द्वारा निर्देशित एवं देशप्रिय क्लब,रांची द्वारा प्रस्तुत नाटक चरणदास चोर का मंचन पिछले दिनों किया गया . चरणदास चोर एक ऐसे चोर की कहानी है जो मजाक ही मजाक में आपने गुरूजी को सच बोलने का प्राण दे देता है साथ ही चार और प्रतिज्ञा कर लेता है की कभी सोने की थाली में नही खाएगा न ही कभी किसी रानी से शादी करेगा, न ही कभी किसी जुलुस में हाथी पर बैठ कर निकलेगा , न ही कभी किसी देश का राजा बनेगा . और बिना कोई झूठ बोल कर चरनदास चोरी करता है उसके ईमानदारी का डंका पुरे देश में ब़ज उठता है .वह अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी चोरी राजमहल के खजाने से करता है , उसकी सच्चाई से रानी उस पर मर मिटती है और उस से शादी करना चाहती है परन्तु गुरु को दिए वचन के अनुसार चरणदास मना कर देता है जिससे गुस्से में आकर रानी उसे मौत की सज़ा देती है आपने गुरु को दिए वचन को निभाते हुए चरणदास मौत को गले लगा लेता है. मूल रूप से चरणदास चोर एक छतीसगडी नाटक है जिसके मंचन देशभर में होते रहते है .इस प्रस्तुति में सभी कालकारो ने अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभाया , खास कर गुरु की भूमिका में दीपक चौधरी ने काफी प्रभावित किया. एक अच्छी नाटक की प्रस्तुति के लिए संजय लाल और उसके टीम के लोग बधाई के पात्र है

रविवार, 11 जनवरी 2009

ब्यंग "देखो कुत्ता .... कर रहा है ..

मैं सबसे पहले उन लोगो से माफ़ी मांग ले रहा हूँ ,जिन्हें यह पढ़कर अश्लील आ असभ्य लगे...
अब मै अपनी बात शुरू करता हूँ मेरी किस्मत आज कुछ ज्यादा ही ख़राब थी,मुझे बड़ी जोर की लघुशंका लगी थी,मैंने देखा कई लोग खुली सड़क के किनारे दीवाल के पास लघुशंका निवृत हो रहे है.
मै भी उस दीवाल के पास पहुचा की मेरे पैर थम गए ,दीवार पे लिखा था यहाँ .......... करना मना है.. मै क्या करता पढ़ा - लिखा, ग्रेजुएट ..किसी जाहिल की तरह वही पर तो लघुशंका नही कर सकता था , लोग क्या सोचेंगे खैर ..... थोडी दूर आगे बड़ा , प्रेशर जोर की थी .. आगे कुछ दूर पर किनारे की तरफ़ एक दीवाल दिखाई दी उसके नीचे से नाली बह रहा था मुझे यह जगह अच्छी लगी , मै वह पहुचा.. पर यह क्या ..यहाँ भी वही पैगाम बल्कि यहाँ तो जोरदार तरीके से लिखा था .. यहाँ ....करने पर २०० रुपैया जुर्माना लगेगा... मै सोचने लगा ये क्या बात हुई ..बड़ी अजीब बात है गाड़ी नो पार्किंग में लगे तो ट्राफिक वाला तो ९०/- रुपया ही चार्ज करता है परन्तु यहाँ नो पार्किंग पर २००/- तो ज्यादा है, मै किसी तरह आपने प्रेसर को अड्जेस्ट करता हुआ आगे की तरफ़ निकल पड़ा शायद कोई बढ़िया ज़गह दिखे तो मै आपनी 'प्रेशर' वहीँ छोड़ आऊं . करीब १२० सेकेंड के बाद एक सुरछित ज़गह दिखाई पड़ी , जैसे ही मैंने वहां पहुँच कर आपनी zip खोली ही थी कि किसी की कड़कदार आवाज़ सुनाई पड़ी .. पीछे मुड कर देखा तो.. कोई रिक्शेवाला को आवाज़ दे रहा था मैंने चैन की साँस ली.. पर यह क्या यहाँ भी दीवाल पर लिखा था यहाँ पर ..... करने पर मार पड़ेगी ..मेरी हालत तो वैसे ही ख़राब थी इस चेतावनी को पढ़ कर तो मेरी स्थिति और भी नाज़ुक हो गई पर मरता क्या न करता मुझमे प्रेशर रोकने की ताक़त नही थी और मुझे मालूम है की आपमें भी इसे रोकने की ताक़त नहीं होगी खैर.. मेरी स्तिथि तो इतनी ख़राब हो चुकी थी की, नल कभी भी खुल सकता था पानी की बुँदे कभी भी टपक सकती थी ... इतने मे मुझे याद आया की पास में ही तो सरकारी मूत्रालय है ,बेकार में ही मै परेशां हो रहा था, हमलोग की भी एक बेकार सी आदत है जब कभी खाली बैठेंगे या गप्पे मारेंगे तो सरकार को गाली जरुर बकेंगे ... अब देखिये सरकार हमलोगों का कितना ध्यान देती है सरकारी मूत्रालय बना कर रखी हुई है और हम है कि बेकार में ही परेशां हो रहे थे ... यह अलग बात है कि अख़बार वाले सरकारी मूत्रालय घोटाले पर क्या-क्या नही छापे ....अख़बार वाले के हिसाब से देखे तो इस पर कितने नेताओ,अफसरों, कलर्क ठीकेदार सभी को लाखो का मुनाफा हुआ ..पर कोई मेरी नज़र से तो देखो ,मेरे प्रेशर कि नज़र से तो देखो ..तब पता चलेगा नगर निगम वालों ने कितना अच्छा काम कि है ..सरकारी मूत्रालय खोल रखे है .. नही तो तेरा क्या हाल होता खन्ना, इज्ज़त का फलूदा तो निकल ही जाता मै सरकारी मूत्रालय के अन्दर जा घुसा कि वहां कि हालत देख मेरा माथा धूम गया... लगता है सरकारी मूत्रालय को कई लोगों ने संडास बना दिया था , .. इधर-उधर बिखरे परे थे ..छी.. छी.. इतना गन्दा एक तो मेरी हालात ....कि प्रेशर से ख़राब थी और ऊपर से ये सब ..किसी तरह वहां से निकला और बर्दाश्त कि हद तो पार हो चुकी थी झट एक दीवाल के नीचे खड़ा होकर ...कि प्रेशर को छोड़ दिया ......साँस रोका और थोडी देर में एक लम्बी साँस छोड़ी ...फ़िर एक लम्बी साँस लिया ...वाह .. आनंद आ गया ..कितना आराम लगता है ..आप सभी ने भी तो इस आराम को कई बार अनुभव किया होगा ...मै पीछे कि तरफ़ मुड कर वह से निकल पड़ा ...कुछ कदम चलने के बाद मैंने सोचा उस दीवाल को कम से कम धन्यवाद् तो दे दूँ ..उस दीवाल ने मेरी इज्ज़त बचा ली नहीं तो आज कुछ भी हो सकता था ...मै दीवाल को धन्यवाद् देने के लिए जैसे ही मुड़ा कि मेरे शब्द मेरी ज़ुबां पर ही अटक गए ... दीवाल पर लिखा था "देखो कुत्ता ....... कर रहा है"

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

धारा के साथ ..

धारा के विरुद्ध

चलते-चलते

पता नही ....

किस मोड़ पर

धारा के साथ हो गया

आराम से बहते - रह्ते

आराम की आदत हो गई

पर...

जब...

आँखे खुली तो ..

मेरी आवाज़ की

बुलंदी

ना जाने

कहां खो गई।

समझा

धारा के विरुद्ध और

धारा के बहाव में

आदमी

क्या पाता है

और

खोता है।
शुभ प्रभात....आपका आज का दिन मंगलमय हो