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बुधवार, 25 मार्च 2009

हारा हुआ सेनापति

मैं एक हारा हुआ सेनापति हूँ ,आप हैरान हो गए...आप सोच रहे होंगे की हारता तो सिपाही है,सेनापति तो सिर्फ जीतता है क्योंकि जीतने का सेहरा सेनापति के गले होता है और हार हमेशा सैनिकों कि होती है .........मुझ हारे हुए सेनापति कि एक आपसी मानसिक युद्ध में एक टांग या फिर यूँ कहे कि एक पैर टूट गया ........आप तो जानते ही है कि हर आदमी ..नहीं यहाँ आदमी कहने से किसी को दुःख हो सकता है ..अतः मनुष्य कहता हूँ ...इसमें भी मनु का नाम आने से किसी को तकलीफ हो सकती है ...अतः क्षमा मांग लेता हूँ क्योंकि मैं अल्पकालिक अपाहिज हूँ ....हाँ तो मैं कह रहा था कि लोगों कि तरह मेरे भी दो पैर है जिससे मैं चलता हूँ, मेरे दोनों पैर मेरे शरीर के बोझ को उठाकर जहाँ मेरा मष्तिष्क कहता है वहां ले जाता है इसमें मेरे पैरों को गुलामी का अहसास नहीं होता ना हीं मेरा मष्तिष्क अपने को मालिक समझता है ....... चूँकि मेरे दो ही पैर है अतः मैंने इसका नामांकरण कर रखा है एक जिसे आप बायीं तरफ वाली या फिर दायीं तरफ वाली जिसे देखने में सुविधा हो उसे मैं सकारात्मक और ठीक इसके विपरीत दायीं तरफ वाली या फिर कहें बायीं तरफ वाली जिसे आपके देखने का कोण समझ में आता हो नकारात्मक नाम दिया... अब हुआ क्या कि एक दिन हमारी मानसिक युद्ध में मष्तिष्क का फयुज़ थोडा ऑफ हो गया और मेरा एक पैर टूट गया ..अब चूँकि बेचारा मष्तिष्क फयुज़ था अतः जब ठीक हुआ तो कन्फ्यूज़ हो गया कि टूटा हुआ पैर सकारात्मक था या फिर नकारात्मक .... खैर छोडिये ये तो मेरे मष्तिष्क का प्रॉब्लम है ....आपका मष्तिष्क ...आपकी सोच तो ठीक है ...अब आगे आप खुद ही तय कर लीजिये कि मेरा पैर कौन सा टूटा था ..और हाँ मेरे टूटे पैर पर इतना भी मग्न ना हो जाइयेगा कि आप भी लंगडाकर चलने लगे जैसा कि मेरे साथ हुआ .. अब पैर टूटा तो ज़ाहिर है की मैं डाक्टर के पास जाऊंगा ..मैं वहां गया तो पता चला की पैर की हड्डी टूट गयी है ,मैं समझा नहीं ...हम तो ठहरे देहाती मैं सोच रहा था की पैर टूट गया लेकिन यहाँ पता चला की पैर की हड्डी टूट गयी है ..अब ये पैर की 'हड्डी' क्या होती है मेरी समझ में नहीं आया और मैं सोचता ही रहा की न जाने कब मेरे पैर पर मोटी प्लास्टर की परत चढ़ा दी गई अब मेरा एक पैर दुसरे पैर से थोडा भारी हो गया था मेरे नकारात्मक या फिर सकारात्मक पर एक मोटी सी परत चढ़ गई थी ,सभी को यह परत दिखाई पड़ रही थी और हाल समाचार पूछ बैठते की भई!! कैसे पैर टूटा ....अब क्या करे मैं किसी फिल्म की तरह रिप्ले करके तो दिखा नहीं सकता लिहाज़ा मुँह से बता दिया करता था कई दिनों का यह सिलसिला रहा तो मुँह ने भी घटना का बयाँ करना बंद कर दिया सिर्फ एक हँसी (खोखली या व्यंग्यात्मक, मुझे नहीं पता था परन्तु खुल कर हँसी नहीं थी )हंस देता, सामने वाला भी समझदार .. समझ लेता था परन्तु मेरे दोनों पैर एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक समझने को तैयार हीं नहीं सकारात्मक आगे बढ़ना चाहता तो मोटी परत वाला नकारात्मक उसे बढ़ने नहीं देता क्योंकि एक तो टूटा हुआ दूसरी उस पर चढ़ी मोटी परत दोनों पैर के चलने का संतुलन नहीं बना पा रही थी मेरे शरीर का बोझ अब अकेले किसी एक को उठाना था, दूसरा चुपचाप आराम फरमाता .... डाक्टर की भी सलाह थी की घर पर ही आराम करे कहीं चलने की जरुरत नहीं है ..पर मैं ठहरा आदमी जात मेरी नैसर्गिक कुछ जरुरत थी जिसे पूरा करने के लिए कुछ कदम चलना ही पड़ता पर यह क्या मेरे सकारात्मक और नकारात्मक ने तो मुझे 'जड़' ही कर दिया दोनों में कोई एक तो ठीक था जो मेरी बोझ को अकेला उठा सकता था, लंगडा कर ही सही, घसीट कर ही सही ..पर नहीं .. दोनों चुप .. दोनों को सौतिया डाह हो गई, तब मेरे मष्तिष्क ने काम किया मालिक का आदेश गुलाम क्यों नहीं सुनेगा.. बस फिर क्या था सकारात्मक उठ खडा हुआ अपने बल पर, नकारात्मक को सहारे लेकर धीरे-धीरे परन्तु लम्बे डग लेकर एक बैसाखी के सहारे नैसर्गिक ज़रूरत के लिए चला .... मैं सोच रहा था की दुनिया कितनी तरक्की कर ली है, यदि कहीं कोई ऐसी रिंच होती की मेरे नकारात्मक या सकारात्मक जो पैर ख़राब हो उसे अपने शरीर से कुछ समय के लिए अलग कर लेता परन्तु ..... शायद ऐसी कोई रिंच अभी तक अमेरिका वालों ने भी अभी तक नहीं बनायीं है न ही चीन ने ..शायद मंदी की मार में अभी वे बना भी नहीं पाएंगे. धीरे-धीरे समय बीतते चला गया मेरा नकारत्मक या सकारात्मक ठीक होता चला गया पैर की टूटी हड्डी धीरे-धीरे जुड़ने लगी और अब सकारात्मक या नकारात्मक एक दुसरे के सहारे एक दुसरे के दर्द को झेल कर, कभी तेज़ तो कभी धीमी गति से चलने लगे कुछ ही दिनों में डाक्टर की लगाई मोटी परत नर्स ने काट दी मेरे सकारत्मक या नकारत्मक बिना किसी परत के थे परन्तु प्लास्टर होने से लगा दाग दिखाई दे रहा था मुझे पता था की कुछ दिनों में प्लास्टर के दाग मिट जायेंगे परन्तु नकारात्मक या सकारत्मक जब भी साथ चलेंगे अच्छी गति से चलेंगे, संतुलन में रहेंगे परन्तु किसी मोड़ पर सकारात्मक या नकारत्मक को दर्द होगा तो पैर टूटने की घटना याद हो जायेगी, याद हो जायेगी वो लंगडाकर चलना, एक दुसरे के सहारे आगे बढ़ना और ना चाहते हुए भी मेरे शरीर के बोझ को उठा कर चलना .....
धन्यवाद्