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सोमवार, 1 जून 2009

कचहरीनामा (२)दर्द की दवा

कचहरी वास्तव में एक तीर्थस्थल है जहाँ हर धर्म,मज़हब,जाति के लोगों का संगम होता है सभी अपने धर्म मज़हब को भूल दुसरे के दर्द को बाँटने की कोशिश करते है. कचहरी में ही आपसी विवादों का निराकरण होता है एक सा दर्द वाले जब एक जगह बैठते है तो उनका दर्द दूसरो के लिए दवा बन जाती है कचहरी वह ज़गह है जहाँ लोग अपने मुक्कदमे में ज्यादातर गाँव से आते है औसतन कचहरी में आने वाले मुव्वकिल, गवाहों को करीब ४० से ५० किलोमीटर का फासला तय कर आना पड़ता है जो आ गए उन्हें अगली तारीख लेकर जाना है १० बजे से शाम ४ बजे तक कब उनको कोर्ट से पुकार होगा इसकी जानकारी उनको कुछ ही दिनों में हो जाती है इतने लम्बे समय को काटने के लिए अक्सर लोग कचहरी परिसर में ही घूमते रहते है और कचहरी परिसर में होने वाली सामानों की बिक्री का हिस्सा बन जाते है. ज्यादातर कचहरी में दांतों को चमकाने वाला दंतमंजन बन्दर छाप दंतमंजन, देशी तरीकों से बना हुआ अचूक दवाएं, आँखों की रौशनी बढाने का चश्मा, अजगर के खेल जिसमे हमेशा बताया जाता है की किस प्रकार अजगर पुरे मुर्गी ,बकरे को निगल जाया करता है और निगलते हुए दिखायेंगे परन्तु खेल दवा बिक्री के साथ ख़त्म हो जाता है लोग देशी दवाओं से लेकर बन्दर छाप दंतमंजन तक खरीद कर ले जाते है सांप-नेवले का खेल देखने की लिए तो अच्छी खासी भीड़ लग जाती है गांवों में यह भी कहावत है की जो कुछ कही नहीं मिटता कचहरी में मिल जायेगा यानि कचहरी एक प्रकार का देशी ब्यापार मण्डी है जहाँ हर चीज़ बिकती है लोग खरीदते है खुश रहते है हमेशा आते है आपने काम के साथ मनोरंजन भी करते है और फिर वापस घर की तरफ कचहरी की चर्चा करते हुए लौट जाते है कचहरी के अन्दर हर शख्स की आपनी एक पहचान होती है एक नाम होता है कोई अच्छा होता है तो कोई बूरा होता है ......आगे की कड़ी में हम इसकी चर्चा करेंगे ..

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