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रविवार, 31 मई 2009

कचहरीनामा

कचहरी यह एक नाम है जहाँ जाने के नाम से कई लोगों के पसीने छुट जाते है उनकी नज़र में कचहरी सिर्फ दागदार लोगों की ज़गह होती है परन्तु वे ये नहीं जानते की कचहरी में ही विद्वान अधिवक्ता,न्यायाधीश, जिला कलक्टर, अंचलाधिकारी पुलिस-प्रशासन के लोग आपकी सेवा में कार्यरत है ,पर आपको यह जानकर काफी आश्चर्य भी होगा की आप कचहरी कभी जाएँ या न जाएँ परन्तु आपकी कुंडली वहां पहुँच जाती है किसी के ज़न्म से मृत्यु तक का प्रमाण पत्र कचहरी में ही बनेगा तो आप पहुँच गए न कचहरी ...... चलिए मैं आपको इस कचहरीनामा के कई किस्से किश्तों में बताऊंगा काफी मज़ेदार है अब जैसे आपका मोबाईल गुम हो गया हो,शपथ-पत्र के लिए चले आइये स्कूल-कालेज में एड्मिसन लेना हो शपथ-पत्र के लिए चले आइये इस तरह किसी भी छोटी से छोटी बातों के लिए आपको शपथ-पत्र दाखिल करना होगा आप सोचते होंगे की मै सही हूँ फिर भी शपथ-पत्र क्यों तो बात साफ है भैयाजी कोई भी अफसर अपने जिम्मे कोई खतरा नहीं मोलना चाहता है इसलिए आप ही शपथ-पत्र दाखिल कर दीजिए यहीं नहीं अगर आपका दिन आज काटे नहीं कट रहा हो तो भी कचहरी में कई गुनी जादू का खेल से लेकर सांप -भालू का नाच दिखाते मिल जायेंगे कचहरी में आपके पहुँचते ही सबसे पहले दिखने वाला प्राणी कोई वकील ही होगा .....वकील....... इनके बारे में कई किस्से सुनने को मिलते है जिसमे मशहुर जुमला है की वकील कभी सच नहीं बोलता झूठ बोलने के ही पैसे लेता है इस पर कितनी सच्चाई है इसकी चर्चा हम आगे के किश्तों में करेंगे परन्तु यह एक कडुवा सत्य है की वकालत पेशा हर किसी के बस की नहीं जो सामने से बड़ा ही आसान लगता है परन्तु उसके अन्दर किसी केस के स्टडी में लगी मानसिक मेहनत सिर्फ कोर्ट में जिरह या बहस के समय ही दिखती है और एक सत्य यह भी है की वही वकील सबसे अच्छा होता है जिसके पास आप जब चाहे पहुँच जाएं आपनी समस्या बतावे और वह तुंरत समाधान भी खोज ले और बिना फीस के ही चल दे और सबसे बुरा वकील वह है जो परामर्श पर आपनी फीस लेता और आप महसूस करते है की मै बेकार ही वकील के पास गया था इतना तो मै भी जानता था परन्तु आप शायद ही यह महसूस कर पाएंगे की किसी वकील का परामर्श आपको कई अनहोनी परेशानियों से बचाता है वकील कोई मजदूर नहीं की वह आपको कुदाल-हथोडी के साथ दीवाल तोड़ता हुआ दिखेगा वकील की कलम और जुबान का जादू आपके अदृश्य परेशानियों को तोड़ डालता है वास्तव में वकील आपकी कानूनी अड़चनों, आपके परेशानियों को आपसे दूर कर आपको मानसिक शांति पहुचने वाला मसीहा का दूसरा रूप है जिसका आप कभी आदर कर सर नवाते है तो कभी मजाक उड़ते है ..............................हम मिलते रहेंगे आगे के किश्तों में

रविवार, 24 मई 2009

बिना प्याज़-लहसुन के

ये बड़ा ही मजेदार घटना है ,साथ ही एक नया तरह का मजाक जिसकी कल्पना या ब्याखा भी काफी मज़ेदार है। मेरे एक मित्र हैं मिश्रा जी ,ब्राह्मण है शुद्ध शाकाहारी ... मिश्रा जी तो खानपान में प्याज़-लहसुन ले लेते है परन्तु मैडम मिश्रा का प्याज़-लहसुन से परहेज़ है अत: घर से बाहर खान-पान नहीं करती है या कभी बाहर जाना हुआ तो एक तरह से उनका उपवास हो जाया करता है ....घटना ये है की मिश्रा जी को किसी एक बंगाली मित्र ने अपने घर शादी में दावत दी और उन्हें फैमिली संग आने को जोर दिया तो मिश्रा जी ने उन्हें स्पष्ट बता दिया की उनकी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है इस पर उनके मित्र ने बताया की उनकी दादी भी बिना प्याज़-लहसुन की है बस मिश्रा जी ख़ुशी -ख़ुशी उनके घर दावत पर पहुँच गए। खाने के वक़्त सभी लोग साथ बैठ गए खाना परोसा जाने लगा पहले चावल फिर दाल ..फिर सब्जी उसके बाद तली हुई मछली मैडम मिश्रा की थाली में रखी गई अब तो मैडम मिश्रा की हालत मछली देख ख़राब हो गई और मिश्रा जी को तो काटो तो खून नहीं वाली स्तिथी हो गई सामूहिक भोज में बैठे थे उठ भी नहीं सकते प्रतिष्ठा का प्रश्न था किसी तरह कुछ मिनट समय काट निकल चले की उनके बंगाली मित्र मिले मिश्र जी बोल उठे क्या मजाक है मैंने पहले ही कहा था की मेरी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है और तुम ये ..... उनके मित्र को कुछ समझ में नहीं आया उसने बड़ा ही मासूम स्वर में कहा हमारे खाने में तो प्याज़-लहसुन तो थी ही नहीं .... दरअसल बंगाली समुदाय में मछली को शुभ माना जाता और मछली बिना प्याज़-लहसुन के तल के बनाई गई थी और मिश्र जी बिना प्याज़-लहसुन का मतलब तो आप समझते ही है

रविवार, 3 मई 2009

आओ इस गर्मी का आनंद लें




आप कल्पना करते होंगे सर्दी के मौसम में धुप की, गर्मी के मौसम में छाया, ठंढी हवा की पर क्या आपने कभी इन दिनों हो रहे तपिस ......गर्मी का आनंद लिया है .नहीं ना ... आप गर्मी से मत घबराइये........ आनंद ले ,मौसम का आनंद ....आपने द्वारा प्राकृतिक से छेड़छाड़ करने ,नदी -नालों को बंद कर उस पर घर बना कर रहने ,पेड़ -पौधों को काटने ,तालाब को समतल मैदान बनाने धरती माता के शरीर में छेद बोरिंग कर धरती के अन्दर के पानी को बाहर निकल निर्दयतापूर्वक ख़त्म करने का आनंद का ही तो दूसरा नाम सूर्य देवता की प्रचंड प्रकोप है ये गर्मी ............उफ़ ये गर्मी ..............हाये ये गर्मी ........ ये मेरे ही शहर का नहीं पुरे देश का यही हाल है ..........कभी मेरा शहर दूसरा शिमला के नाम से जाना जाता था ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी हमारी रांची, आज सिर्फ़ राजधानी है और हमलोग राजधानी की कीमत चुका रहें है अचानक आए बढती जनसँख्या ,आबादी के साथ गाड़ियों के द्वारा फैलते प्रदुषण, हरे भरे जंगलों की जगह कंक्रीटों के उग आए नए आसियाने जिसे गर्व से हम मनुष्य फ्लैट कहते है जिधर देखो उधर नज़र आयेंगे ये नये जंगल ..............और इस जंगल बनाने की कीमत है.... धरती को छेद कर धरती के नसों में बहने वाले लहू यानि हमें जिंदा रखने वाली बेशकीमती अमृत ज़ल,पानी water या हम जो भी नाम दें निकाल लेना, बहा देना उस वक्त हम कल्पना भी नहीं करते की ये अमृत है परन्तु आज जब गर्मी चरम पर है तो हम उसी पानी के लिए तरस रहें है ......... हमारा शहर जहाँ पारा ३७ डिग्री पार करते ही वर्षा होना था गर्मी के दिनों में भी रात को सोते समय चादर की ज़रूरत पड़ती थी आज हम ४३ डिग्री पारे का आनंद ले रहे है या यों कहे की भुगत रहें है तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी ..........बड़ा मज़ा आ रहा है न तो दिन में चैन न ही रातों को ठीक से नींद आती है और ये गर्मी कहती है की बेटा या तो आनंद तो या फ़िर भुगतो हम तो गर्मी का आनंद ले रहें है आप क्या कर रहें है ...?