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बुधवार, 22 अप्रैल 2009

क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

लल्लू जी काफी परेशान थे, चुनाव का वक्त था उसने काफी चुनाव देखें है पर हर चुनाव उसे एकदम नया सा लगता है , इस बार तो हर उमीदवार लल्लू जी की खुशामद में जी-हुजूरी कर रहे थे और हमारे लल्लू जी की खास कमजोरी है की किसी को नाराज़ नहीं कर सकते अत: चुनाव के दिन अपने मतदान केन्द्र में जाकर उसने सभी चुनाव चिन्हों के आगे लगे बटन को दबा दिया और बहुत खुश हो कर बाहर निकले उसके बाहर निकलते ही प्रत्याशी उनसे पूछते मुझे वोट दिया तो लल्लू जी खुशी से कहते हाँ, मैंने तुम्हारे चुनाव चिन्ह का बटन दबा दिया ...नेता भी खुश और लल्लू जी भी खुश ....क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

धन्यवाद ३६५



कल ३६५ न्यूज़ चैनल के द्वारा रांची जिला स्कूल परिसर में देश के प्रमुख दो राजनितिक पार्टी कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला स्तरके नेताओं के साथ जनता का अदालत का लाइव टेलीकास्ट किया जिसमे वर्तमान रांची के विधायक भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ज़नता के सवालों के आगे इन नेताओं के पसीने छूटते साफ दिखाई पड़ रहे थे, इनकी बेशर्मी देखिये की सवाल कुछ होता तो ज़वाब कुछ दे रहे थे बाद में इस बिन्दु पर प्रशन किया गया तो इनकी हालत ख़राब थी दोनों ही राजनितिक पार्टी सिर्फ़ एक-दुसरे पर आरोप लगा बचना चाह रहे थे परन्तु जनता के उग्र प्रश्न इनकी इनकी पोल खोलने लगी मेरे ख्याल से कल पहली बार इन्हे जनता के वजूद का अहसास हुआ होगा ................... इसके इसके भी मैं समझ सकता हूँ की ये गैंडा से भी मजबूत खाल वाले प्राणी सत्ता में आने के बाद कुछ नहीं करेंगे क्योंकि ३६५ न्यूज़ चैनल न तो प्रत्येक वर्ष इस तरह का कोई कार्य करेगा न ही उनसे प्रेरित हो कोई अन्य जनता को जागरूक करने करने के लिए प्रयास करेगा ये चुनाव की आंधी है हर रंग के हवाओं का सिर्फ़ दिखाई दिया रहना जारी रहेगा ...............................जय हिंद

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

नागपुरी फिल्म 'झारखण्ड कर छैला' का ट्रेलर



झारखण्ड में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का बनना काफी पहले से शुरू हो चुका है फ़िल्म एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आपनी बात लोगों तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है वैसे यदि हम कामर्सियल फिल्मों की बात को यदि छोड़ दे तो कई ऐसी फिल्में है या फ़िर कहें कई इसे निर्देशक है जिनकी फिल्म उनकी सोच, उनकी बौद्धिक स्तरको बताता है इन दिनों झारखण्ड में काफी फिल्में मसलन, डाक्यूमेंट्री, मनोरंजक ,एजुकेशनल, विज्ञापन फिल्म बन रही है इन्ही फिल्मों की एक कड़ी है 'झारखण्ड कर छैला' जिसे क्षेत्रीय बोली 'नागपुरी' में बनाया गया है, जिसे जल्द ही सिनेमा घरों में दिखाया जायेगा\ फिल्म का ट्रेलर आप यहाँ देख सकते है, साथ ही चाहें तो http://www.youtube.com/watch?v=Rx_lLHCcJm0पर भी देख सकते है


शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009

सावधान

सावधान
तुम्हारे असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
यह ईमानदारी का रोग
कही न कही भटक रहा है
सावधान
वह एक ईमानदारी आदमी है
सावधान
उससे दूर रहों
सावधान
वह अछूत है
सावधान
उसके समीप आने से
ईमानदारी का रोग लग सकता है
सावधान
ईमानदारी लाइलाज बीमारी है
वह भूखा है
उसका परिवार भूखा है
हर रोज ये
ज्वालामुखी की तरह
निकलने को
बेचैन रहता होगा
परन्तु सावधान
कहीं
ये तुम्हे
रोगग्रस्त न कर दे
ईमानदारी का रोग न लगा दे
वैसे
बाज़ार में
ईमानदारी का एंटी वाय्टीक
भ्रस्टाचार,बेईमानी मौजूद है
बिना मोल उपलब्ध है
क्या चाहोगे
ईमानदारी?
नहीं ना
इसे बस
अपने अन्दर
असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
भटकने दो
ज्वालामुखी पनपने दो
विस्फोट कभी तो होगा
सावधान,
ईमानदारी तुम्हारी नसों में जिंदा है

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

एक था राजा

मैंने सुना था की लोकतंत्र के चार मज़बूत स्तम्भ है मैं सोचता हूँ की कैसा होगा होगा वह मज़बूत अदृश्य स्तंभ क्या चारों स्तम्भ आपस में लड़ते नहीं होंगे अगर ये लड़ते होंगे तो इनमे शक्तिशाली कौन होगा ...अगर पांचवा स्तम्भ होता तो ...मुझे लगता है पांचवे स्तम्भ शुरू में खुद को गौरान्वित महसूस करता होगा ..परन्तु बाद में शायद घमंड करता होगा अपने सर्वश्रेष्ट होते का ..यदि कोई छठा या फिर सांतवा स्तम्भ होता तो ... खैर ... बात बहुत पहले की नहीं है यही कोई दो- चार महीने पहले की होगी... एक राजा था .. लोकतंत्र का राजा ..आप आश्चर्य न करे लोकतंत्र में भी राजा होता है उसके नाम या कहें की संज्ञा अलग-अलग हो सकती है आप चाहें तो प्रधानमंत्री भी कह सकते है बात लोकतंत्र की थी और आप तो जानते ही है लोकतंत्र यानि इस देश के लोगों की यह गलतफहमी की वही सर्वेसर्वा है यानि जनता ही देश की मालिक है ..और इसी गलतफमी में वे अपनी पूरी जिंदगी ब्यातित कर देते है कभी तेजी में बढ़ी महंगाई की मार पर रोते है तो कभी विरोध होने पर कुछ दाम घटी महंगाई पर खुश होते है और महंगाई भी इनसे ऐसी दोस्ती कर चुकी है की पीछा ही नहीं छोड़ती इस देश में चूँकि लोकतंत्र है अत: राजा का भी चुनाव होता है और यही वक़्त होता है जब गलतफहमियां बढ जाती है चुनाव में खडा आदमी जब उनके पास जाता है, तो जनता सोचती है की देख मेरे से गिड़गिडा रहा है पर सचाई तो ये है की आप सिर्फ मोहरे है सामने वाला सिर्फ आपको छलावा देने के लिए नाटक कर रहा है जबकि जीत का सेहरा उनके गले होगा जिसके पास ताक़त होगी पैसे होंगे इन्ही पैसों से वह लोकतंत्र की ताज़ा नीव युवा को अपने शब्दजाल में फांश लेंगे युवा भी अभी की सोच अपनी ताक़त उसे जीताने में लगा देगा और राजा बनने के बड़े ब्यापारी अपने शब्दों में वर्तमान राजा को कूटनीति के तहद कमजोर राजा की संज्ञा से विभूषित करेंगे क्योंकि कमजोर राजा की संज्ञा ही जनता के मन में वर्तमान राजा के प्रति आशक्ति को कम करेगी जिसका फायदा हर हाल में उठाना है क्योंकि कमज़ोर और शक्तिशाली ये दो शब्द ही अलग-अलग छवि दिखाते है कोई व्यक्ति यदि कम बोलता है तो वह कमज़ोर समझा जाता है जबकि चिल्लाने वाला ताक़तवर हो जाता है और हम लोकतंत्र वाले मज़बूत, ताक़तवर पसंद करते है क्योंकि चिल्लाने वाले की भाव-भंगिमा से गूंगे-बहरे भी तैश में आ जाते है ऐसा तैश की कुछ भी तोड़ दे,विवादस्पद बना दे परन्तु कमजोर का क्या ...कही भी चुपचाप अच्छा कर रहा हो ....हल्ला ही नहीं करता.. तो पता कैसे चलेगा और यदि पता चल गया तो हम कह देंगे की दुसरे के इशारे पर करता है ..लोकतंत्र है ..कहने की, बोलने की छुट है और बाज़ार में छुट पर ही तो लुट है और ये लोकतंत्र है भैया यानि आपने को एक दिन के राजा होने ख्वाब देखने का ग़लतफ़हमी पलना जबकि बाहुबली की ही हमेशा जीत होती है उनके बिछाए शतरंज पर हम सिर्फ मोहरे हो जाते है उनकी चाह ही शाह और मात है

रविवार, 5 अप्रैल 2009

बदल दो हवाओं का रुख



इस दीये की लौ को
बुझने न दो
ये खुद को जला
दूसरो को
रौशनी देती है
इसे रौशन करो
तेज़ आँधियों को बता दो
की
हम
किसी पर्वत से कम नहीं
हमसे टकराओगे
तो खुद चोट पाओगे
हम
वो है
जो हवाओं के रुख को
मोड़ने की क्षमता रखते है



शनिवार, 4 अप्रैल 2009

शब्द


शब्द
तुम ऋचा हो
तुम वेद हो
तुम्ही रामायण
तुम्ही गीता
तुम्ही पुरान
तुम्ही कुरान
तुम्ही बाईबल
तुम्ही ज्ञान हो
गर हो अंधकार
गर हो जाऊँ
शब्दहीन
मुझे रास्ता बताना
मुझे रोशनी दिखाना
शब्द,
तुम अनंत हो
शब्द,
मुझे खुद से खेलने दो
शब्द
निचोड़ने दो
शब्द
मुझे छूने दो
शब्द
मुझे समझने दो
शब्द
मुझमें समां जाओ
शब्द
मुझे अपने में समां लो

बुधवार, 1 अप्रैल 2009

बा मुलाहिज़ा होशियार..


बा मुलाहिज़ा होशियार ...आपके दरवाज़े फिर वही चेहरा रूप बदल कर आ खड़ा होगा, जिसकी धुंधली सी तस्वीर शायद आपको याद होगी ...ये वही लोग है जो पिछली बार आप से मिले थे ...बहुत पहले ...करीब पॉँच साल पहले..आपको देख कर मुस्कुराएँ थे .. आपसे गले भी लगे होंगे परन्तु उसके बाद ये अदृश्य हो जाते है ...आपसे आपकी इच्छानुसार वायदे कर आपके ज़ज्बातों से खेल ये खिलाड़ी न जाने कहाँ गायब हो जाते है ये आपको सूचना अधिकार से भी नहीं पता चलेगा ..होशियार ....होशियार ..वक़्त है पहचानने का...इनके चेहरों को पहचानिये ..ये रूप बदलने में बहुत माहिर है .....ये आपकी आवाज़ में भी बोल सकते है..आपके ब्लॉग तक पहुँच सकते है .. आपका सब ब्लोक करा सकते है .. अच्छे दूकानदार है सब कुछ बेच सकते है ..बोलने में माहिर की मुर्दा भी उठ इनके पक्ष में चलने लगे ... होशियार ..ये वही लोग है ..जिनके पास पॉँच साल पहले कुछ नहीं था परन्तु अब खरबों की सम्पति है, ये दयावान है अपनी सम्पति का कुछ हिस्सा विदेशों में भी रखते है ....हो सकता है आपसे मुलाक़ात में 'कुछ' आपको मिल जाये ......परन्तु होशियार ये गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले है आपसे फायदा दिखा तो आपके दरवाज़े नहीं तो 'युवा' है न देश की धड़कन उसका भी इस्तेमाल किया जायेगा ..मेरे देश के 'युवा' सावधान ..होशियार ...ये तुम्हारे भी नहीं है ..काम निकल जाने के बाद ये तुम्हे दूध की मक्खी की तरह निकल फेकेंगे ....उठो ..जागो ...कोई तुम्हारे कन्धों का इस्तेमाल करे उसे पलट ज़वाब दो ..जागो ..आपने मताधिकार का प्रयोग करों और दुसरो को भी प्रेरित करो ताकि आपने देश का वही रूप तुम जागते हुए भी देख सकते हो जो तुम अक्सर सपने में देखते हो ..उसी भारत की तस्वीर जब तुम बेचैन होते हो तो तुम्हे प्रेरणा देती है ...उठो ..जागो ..चाँद लोगों की उंगुलियां पर नाचने वाली कठपुतलियां मत बनो अपने मताधिकार का सही उपयोग करों,चुनाव के दिन वोट ज़रूर दो, बोगस वोटों का तुंरत वही विरोध करो .