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रविवार, 1 फ़रवरी 2009

आज ऐसे दिख रहे थे साईं बाबा



पहली जनवरी २००९ के बाद आज साईं मन्दिर, लापुंग जाने का मौका
मिला,घर से मैं, दीपक और उनके जीजाजी अपने अल्टो से करीब
१.३०बजे निकले और करीब ३ बजे मन्दिर पहुचे,हम लोग रास्ते में
बातें करते चल रहे थे की आज काफी देर से मन्दिर जा रहे है प्रसाद
नहीं मिल पायेगा क्योंकि मन्दिर में दोपहर की आरती का समय १२
बजे है इसके बाद भोग प्रसाद मिलता है ..इससे पहले जब भी
हमलोग साईं मन्दिर लापुंग के लिए सुबह ९ बजे तक निकल जाते
थे ... परन्तु वह पहुचे तो मुझे काफी आश्चर्य हुआ खीर प्रसाद का
वितरण अभी तक हो रहा था ...... हमलोग साईं बाबा के दर्शन कर
प्रसाद ग्रहण करने पहुचे तो काफी प्रसन्नता हुई क्योंकि प्रसाद वितरण
सह भंडारा श्री साईं समिति, रांची के द्वारा किया जा रहा था इनसे
हमारी बात-चीत है पता चला की श्री साईं समिति, रांची के द्वारा
प्रत्येक पहले रविवार को मन्दिर में भंडारा सह प्रसाद वितरण किया
जायेगा जो इस वर्ष से शुरू किया गया है जो बड़ा ही नेक काम है ॥
इसके लिए श्री साईं समिति, रांची के सभी सदस्य बधाई के पात्र है श्री
साईं समिति, रांची के सदस्यों एवं ललित अग्रवाल की तस्वीरे साथ है





शनिवार, 31 जनवरी 2009

साईं को समर्पित

साईं को समर्पित यह विडियो जिसे कलकत्ता के नेत्रहीन कलाकारों के द्वारा श्री साईं मन्दिर ,लापुंग,रांची में प्रस्तुत किया गया था जिसकी मात्र ३ मिनट की विडियो क्लिपिंग ....जिसके धन्यवाद् के पात्र वे कलाकार है ..साईं उनकी मनोकामना पुरी करें

(ब्यंग्य) कम्बल का सच ..

रात के करीब १० बज रहे थे पूस की रात ,कड़ाके की ठण्ड थी खन्ना जी को नींद नही आ रही थी, सोचा चलो कही घूम आयें .. फ़िर क्या था खन्ना जी निकल पड़े अपनी अल्टो लेकर मेंन रोड की तरफ़ ... सड़क के किनारे अल्टो खड़ी कर दी और अल्टो से ही चारो तरफ़ छांके .. चारो तरफ़ सन्नाटा ...कुछ रिक्शा सड़क के किनारे लगे हुए थे.. रिक्शेवाला अपनी रिक्शे में ही ओढ़ मूढा कर सोया पड़ा था दो-चार कुत्ते राख की ढेर पर दुबके पड़े थे... थोडी दूर पर दो ब्यक्ति शायद भिखारी होंगे फटे चिथड़े कपड़े पहने बोरा बिछा कर सोये पड़े थे की अचानक एक लाल बती गाड़ी आती है.. मुझे आश्चर्य होता है ,इतनी रात लाल बती वाली गाड़ी ...गाड़ी के सामने देखा तो पता चला की मंत्री जी की गाड़ी थी .. मुझे लगा शायद मंत्री जी को भी नींद नहीं आ रही होगी और मेरी तरह निकल पड़े होंगे मेन रोड का जायजा लेने .. मै सोच ही रहा था की दो - तीन गाडियां ,मोटरसाइकिल भीआकर खड़ी हो गई .. ये सब देख मैं बहुत खुश हुआ की चलो इस दुनिया में मैं ही एक पागल नहीं हूँ और भी कई लोग है जो नींद नही पड़ने पड़ मेन रोड घूमते है । कार से कुछ लोग उतरते है ... अरे ये क्या .ये तो अपने प्रतिष्ठित अख़बार के प्रेस फोटोग्राफर हैं ..इन्हे तो मैं पहचानता हूँ अब मैं गौर से सभी को देखने लगा ..इनमे से कई लोग मेरे परिचित थे प्रेसरिपोटर ,फोटोग्राफर आदि .. आदि मुझे लगा शायद ये लोग अभी अखबार के दफ्तर से लौट रहे होंगे ...क्योंकि अखबार हमारे समाज के होने वाले हर खबरों को हम तक पहुचता है ..जब हम सोते है तो ये जागते है ,और रात्रि के समय ही तो अख़बार का मुखपृष्ठ सबसे अन्तिम में खास न्यूज़ का इंतजार कर छपता है। .. कितना जिम्मेवारी का काम है .. मैं सोच ही रहा था कि देखा एक पुलिस वाला आया और ज़ल्दी- बाजी में इधर उधर देखते हुए उन सोये हुए ब्यक्तियों को पैर से ठोकर मार कर उठता है उनके बीच के वार्तालाप या कहे हॉट-टाक मैं लिखकर सुनाता हूँ.... कितना अजीब बात है न .. क्या करू बोल कर तो सुना नहीं सकता न .. थोड़ा मुश्किल है पर यदि आप चाहते है की उनकी बातों को सुने तो साथ वाला विडियो देख सकते है चिंता न करे विडियो One Act Play का एक अंश है.. माफ़ करे विडियो और वार्तालाप कुछ समय बाद दिखाऊंगा ...इंतज़ार करे ...

शनिवार, 24 जनवरी 2009

बस यूँ ही ...

अगर आप इसे पढ़ रहे है, तो ये मत सोचियेगा की मैं कोई जनवादी कवि या लेखक हूँ , मैं भी उन्ही लोगो में से एक हूँ .... जनता हूँ ... सब जनता हूँ ..फ़िर भी सोया हूँ .. क्योंकि हम सोचते हैं ,की हम तो मालिक है.. हमारे बागों की रखवाली का ज़िम्मा तो हमने अपने पहरेदार को दे रखा है, पहरेदार का काम है, की पहरा करे ,कोई चोरी करता है तो पहरेदार दोषी है ... मैं क्यों ? इसी के लाभ उठाने वालों के जामत का मैं हिस्सा हूँ ..मुझे मत समझना की मैं तुम्हारा हूँ मेरे कई मुखौटे हैं उसमे तुम्हारा भी चेहरा है ...
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
दो के चार बनाना हो
या दो के बीस कर लो
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
समस्याओं को बढ़ने दो
चैन से हमें सोने दो
नेता बनना आसान है
नेतृत्व करना मुश्किल
हम जनता है
सब जानते है
तुम्हारी काली करतुतों में
हम भी साथ रहतें है
जनता सो रही है
कुछ तो खो रही है
मेरा क्या
मै तो मात्र
जनता का अंश हूँ
सब झेल रहे है
मैं भी दंश
झेल रहा हु
सब करते है
मसीहा के आने का
इंतजार
मै भी करता हु
सब कुछ ना कुछ
‘कमा‘ रहे है
मैं भी उनका अंशदार हूँ
जनता सो रही है
मौका अच्छा है
जो करना है कर लो

बुधवार, 21 जनवरी 2009

साईं मन्दिर, लापुंग फोटो २
















साईं मन्दिर,लापुंग के फोटो
















नमस्कार , आज अपने इस ब्लॉग पर मैं आपको अपने शहर से करीब ४किलोमीटर दूर स्थित लापुंग , साईं मन्दिर के कुछ फोटो दिखा रहा हूँ। उम्मीद है ,पसंद आएगी ..अगर आप कभी यहाँ आना चाहे तो आपका स्वागत है





रविवार, 18 जनवरी 2009

OFFLINE ब्लॉग लिखने केTIPS

मैं कई दिनों से यह चाहता था की अपने ब्लॉग को ऑफ़ लाइन (offline)यानि जब मेरा इन्टरनेट Disconnect हो तो भी मैं आराम से अपने ब्लॉग को लिखू एवं उसे अपने कम्प्युटर के किसी ड्राइव पर सहेज करके रखु ताकि जब मैं अपना ब्लॉग किसी कारण पुरा नही लिख पाया हूँ तो पुन: दुबारा फिर से फाइल खोल कर लिख सकूँ ,मैंने कई उपाय किए सफलता हाथ नही लगी मैंने अपने दोस्त राजीव @ भूतनाथ से भी पूछा परन्तु उसके साथ भी यही समस्या थी,इसी बीच कम्प्युटर से खेलते-खेलते मुझे उपाय मिल गया जिसे मैंने अजमाया, सफलता हाथ लगी तो सोचा क्यो न सभी को बताऊ सो यह लिखना आरम्भ किया हम सभी के कम्प्युटर में Notepad है ,उस Notepad पर हम टाइप करते है ठीक उसी तरह जैसे ब्लॉग लिखने पर हम टाइप करते है यानी राम लिखने के लिए हम ram टाइप करते है उसी प्रकार टाइप करना है फिर उसे SAVE कर देना है जिसमे encoding option में UNICODE में SAVE का लेना है फिर जब हमारा दिल चाहे हम इन्टरनेट को खोल कर अपने ब्लॉग में नए संदेश option में जाकर ब्लॉग लिखने वाले स्थान में अपने SAVE किए हुए ब्लॉग को कॉपी कर paste कर दे एवं ब्लॉग में आए उस paste को all select कर अ को चटका लगा दे,देखियेगा आपके ब्लॉग हिन्दी में आ जायेंगे . वैसे इसमे एक खामी है की संदेश वाले स्थान में ३०० से ज़्यादा शब्द एक साथ नही आते लेकिन चिंता की कोई बात नही आप ३०० शब्द ही लेकर बार - बार paste करे एवं उसे पूर्ण रूप दे पुन: इसी क्रम को दोहराए आपका ब्लॉग पुरा हो जाएगा इस तरह आप ऑफलाइन में कई कार्य एक साथ करते हुए अपने ब्लॉग को अपने मन मुताबिक पुरा कर सकते है. यह तो मेरा उपाय था अगर आपके पास कोई अच्छा उपाय हो तो हमें ज़रूर बताये.

नाटक: चरणदास चोर का मंचन


हबीब तनवीर द्वारा लिखित,संजय लाल द्वारा निर्देशित एवं देशप्रिय क्लब,रांची द्वारा प्रस्तुत नाटक चरणदास चोर का मंचन पिछले दिनों किया गया . चरणदास चोर एक ऐसे चोर की कहानी है जो मजाक ही मजाक में आपने गुरूजी को सच बोलने का प्राण दे देता है साथ ही चार और प्रतिज्ञा कर लेता है की कभी सोने की थाली में नही खाएगा न ही कभी किसी रानी से शादी करेगा, न ही कभी किसी जुलुस में हाथी पर बैठ कर निकलेगा , न ही कभी किसी देश का राजा बनेगा . और बिना कोई झूठ बोल कर चरनदास चोरी करता है उसके ईमानदारी का डंका पुरे देश में ब़ज उठता है .वह अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी चोरी राजमहल के खजाने से करता है , उसकी सच्चाई से रानी उस पर मर मिटती है और उस से शादी करना चाहती है परन्तु गुरु को दिए वचन के अनुसार चरणदास मना कर देता है जिससे गुस्से में आकर रानी उसे मौत की सज़ा देती है आपने गुरु को दिए वचन को निभाते हुए चरणदास मौत को गले लगा लेता है. मूल रूप से चरणदास चोर एक छतीसगडी नाटक है जिसके मंचन देशभर में होते रहते है .इस प्रस्तुति में सभी कालकारो ने अपनी भूमिका को अच्छी तरह निभाया , खास कर गुरु की भूमिका में दीपक चौधरी ने काफी प्रभावित किया. एक अच्छी नाटक की प्रस्तुति के लिए संजय लाल और उसके टीम के लोग बधाई के पात्र है

रविवार, 11 जनवरी 2009

ब्यंग "देखो कुत्ता .... कर रहा है ..

मैं सबसे पहले उन लोगो से माफ़ी मांग ले रहा हूँ ,जिन्हें यह पढ़कर अश्लील आ असभ्य लगे...
अब मै अपनी बात शुरू करता हूँ मेरी किस्मत आज कुछ ज्यादा ही ख़राब थी,मुझे बड़ी जोर की लघुशंका लगी थी,मैंने देखा कई लोग खुली सड़क के किनारे दीवाल के पास लघुशंका निवृत हो रहे है.
मै भी उस दीवाल के पास पहुचा की मेरे पैर थम गए ,दीवार पे लिखा था यहाँ .......... करना मना है.. मै क्या करता पढ़ा - लिखा, ग्रेजुएट ..किसी जाहिल की तरह वही पर तो लघुशंका नही कर सकता था , लोग क्या सोचेंगे खैर ..... थोडी दूर आगे बड़ा , प्रेशर जोर की थी .. आगे कुछ दूर पर किनारे की तरफ़ एक दीवाल दिखाई दी उसके नीचे से नाली बह रहा था मुझे यह जगह अच्छी लगी , मै वह पहुचा.. पर यह क्या ..यहाँ भी वही पैगाम बल्कि यहाँ तो जोरदार तरीके से लिखा था .. यहाँ ....करने पर २०० रुपैया जुर्माना लगेगा... मै सोचने लगा ये क्या बात हुई ..बड़ी अजीब बात है गाड़ी नो पार्किंग में लगे तो ट्राफिक वाला तो ९०/- रुपया ही चार्ज करता है परन्तु यहाँ नो पार्किंग पर २००/- तो ज्यादा है, मै किसी तरह आपने प्रेसर को अड्जेस्ट करता हुआ आगे की तरफ़ निकल पड़ा शायद कोई बढ़िया ज़गह दिखे तो मै आपनी 'प्रेशर' वहीँ छोड़ आऊं . करीब १२० सेकेंड के बाद एक सुरछित ज़गह दिखाई पड़ी , जैसे ही मैंने वहां पहुँच कर आपनी zip खोली ही थी कि किसी की कड़कदार आवाज़ सुनाई पड़ी .. पीछे मुड कर देखा तो.. कोई रिक्शेवाला को आवाज़ दे रहा था मैंने चैन की साँस ली.. पर यह क्या यहाँ भी दीवाल पर लिखा था यहाँ पर ..... करने पर मार पड़ेगी ..मेरी हालत तो वैसे ही ख़राब थी इस चेतावनी को पढ़ कर तो मेरी स्थिति और भी नाज़ुक हो गई पर मरता क्या न करता मुझमे प्रेशर रोकने की ताक़त नही थी और मुझे मालूम है की आपमें भी इसे रोकने की ताक़त नहीं होगी खैर.. मेरी स्तिथि तो इतनी ख़राब हो चुकी थी की, नल कभी भी खुल सकता था पानी की बुँदे कभी भी टपक सकती थी ... इतने मे मुझे याद आया की पास में ही तो सरकारी मूत्रालय है ,बेकार में ही मै परेशां हो रहा था, हमलोग की भी एक बेकार सी आदत है जब कभी खाली बैठेंगे या गप्पे मारेंगे तो सरकार को गाली जरुर बकेंगे ... अब देखिये सरकार हमलोगों का कितना ध्यान देती है सरकारी मूत्रालय बना कर रखी हुई है और हम है कि बेकार में ही परेशां हो रहे थे ... यह अलग बात है कि अख़बार वाले सरकारी मूत्रालय घोटाले पर क्या-क्या नही छापे ....अख़बार वाले के हिसाब से देखे तो इस पर कितने नेताओ,अफसरों, कलर्क ठीकेदार सभी को लाखो का मुनाफा हुआ ..पर कोई मेरी नज़र से तो देखो ,मेरे प्रेशर कि नज़र से तो देखो ..तब पता चलेगा नगर निगम वालों ने कितना अच्छा काम कि है ..सरकारी मूत्रालय खोल रखे है .. नही तो तेरा क्या हाल होता खन्ना, इज्ज़त का फलूदा तो निकल ही जाता मै सरकारी मूत्रालय के अन्दर जा घुसा कि वहां कि हालत देख मेरा माथा धूम गया... लगता है सरकारी मूत्रालय को कई लोगों ने संडास बना दिया था , .. इधर-उधर बिखरे परे थे ..छी.. छी.. इतना गन्दा एक तो मेरी हालात ....कि प्रेशर से ख़राब थी और ऊपर से ये सब ..किसी तरह वहां से निकला और बर्दाश्त कि हद तो पार हो चुकी थी झट एक दीवाल के नीचे खड़ा होकर ...कि प्रेशर को छोड़ दिया ......साँस रोका और थोडी देर में एक लम्बी साँस छोड़ी ...फ़िर एक लम्बी साँस लिया ...वाह .. आनंद आ गया ..कितना आराम लगता है ..आप सभी ने भी तो इस आराम को कई बार अनुभव किया होगा ...मै पीछे कि तरफ़ मुड कर वह से निकल पड़ा ...कुछ कदम चलने के बाद मैंने सोचा उस दीवाल को कम से कम धन्यवाद् तो दे दूँ ..उस दीवाल ने मेरी इज्ज़त बचा ली नहीं तो आज कुछ भी हो सकता था ...मै दीवाल को धन्यवाद् देने के लिए जैसे ही मुड़ा कि मेरे शब्द मेरी ज़ुबां पर ही अटक गए ... दीवाल पर लिखा था "देखो कुत्ता ....... कर रहा है"

गुरुवार, 8 जनवरी 2009

धारा के साथ ..

धारा के विरुद्ध

चलते-चलते

पता नही ....

किस मोड़ पर

धारा के साथ हो गया

आराम से बहते - रह्ते

आराम की आदत हो गई

पर...

जब...

आँखे खुली तो ..

मेरी आवाज़ की

बुलंदी

ना जाने

कहां खो गई।

समझा

धारा के विरुद्ध और

धारा के बहाव में

आदमी

क्या पाता है

और

खोता है।
शुभ प्रभात....आपका आज का दिन मंगलमय हो