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शनिवार, 24 जनवरी 2009

बस यूँ ही ...

अगर आप इसे पढ़ रहे है, तो ये मत सोचियेगा की मैं कोई जनवादी कवि या लेखक हूँ , मैं भी उन्ही लोगो में से एक हूँ .... जनता हूँ ... सब जनता हूँ ..फ़िर भी सोया हूँ .. क्योंकि हम सोचते हैं ,की हम तो मालिक है.. हमारे बागों की रखवाली का ज़िम्मा तो हमने अपने पहरेदार को दे रखा है, पहरेदार का काम है, की पहरा करे ,कोई चोरी करता है तो पहरेदार दोषी है ... मैं क्यों ? इसी के लाभ उठाने वालों के जामत का मैं हिस्सा हूँ ..मुझे मत समझना की मैं तुम्हारा हूँ मेरे कई मुखौटे हैं उसमे तुम्हारा भी चेहरा है ...
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
दो के चार बनाना हो
या दो के बीस कर लो
जनता सो रही है
जो करना है कर लो
समस्याओं को बढ़ने दो
चैन से हमें सोने दो
नेता बनना आसान है
नेतृत्व करना मुश्किल
हम जनता है
सब जानते है
तुम्हारी काली करतुतों में
हम भी साथ रहतें है
जनता सो रही है
कुछ तो खो रही है
मेरा क्या
मै तो मात्र
जनता का अंश हूँ
सब झेल रहे है
मैं भी दंश
झेल रहा हु
सब करते है
मसीहा के आने का
इंतजार
मै भी करता हु
सब कुछ ना कुछ
‘कमा‘ रहे है
मैं भी उनका अंशदार हूँ
जनता सो रही है
मौका अच्छा है
जो करना है कर लो

1 टिप्पणी:

  1. सूरज भाई,
    स्वागत, शुभकामनाएँ और बधाई!
    शीर्षक के नीचे अंकित पंक्तियों का फॉण्ट-साइज़ बढ़ा दीजिए।

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