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बुधवार, 3 जून 2009

कचहरी नामा (४) एक परिवार है कचहरी

कचहरी वह जगह है जहाँ शादियाँ भी होती है और तलाक भी मिलता है निसन्तानोँ को बच्चे गोद मिलते है तो उम्रदराज़ वृद्धों को वृद्धा पेंशन प्राप्त होता है इस तरह कचहरी किसी पाक परिवार की तरह है जहाँ खुशियाँ और गम दोनों बसते है।
परन्तु एक नाम है कचहरी, जो दिलों-दिमाग में खौफ को पैदा करता है जो कभी कचहरी नहीं गए हो उनके दिमाग में ये बात हमेशा बैठी रहती है कि कचहरी में सिर्फ गलत लोग ही जाते है कचहरी में कदम रखना यानि अपनी इज्ज़त का फतुदा निकालना होता है जबकि ऐसी कोई बात नहीं होती कचहरी में भी इसी ग्रह के प्राणी रहते है कोई अन्तरिक्ष से आकर किसी के इज्ज़त या प्रतिष्ठा को हर नहीं लेता बल्कि आप पर लगे किसी ऐसे इल्जाम जो जाने अनजाने आपसे हो गया हो या नहीं भी हुआ हो पर आपका नाम उसमे शामिल हो गया हो तो समाज में आपकी खोई प्रतिष्ठा, इज्ज़त को वापस लाता है कचहरी।
हम बात कर रहे थे शादियों की ......आपने कई बार सुना होगा की किसी के घर वाले शादी के लिए राजी नहीं थे तो उनलोगों ने कोर्ट में शादी कर ली या मजाक में कहते होंगे की कोर्ट मैरिज कर शादी का खर्चा बचाऊंगा ...कोर्ट में शादियाँ होती है स्पेशल मैरिज एक्ट के तहद जिसमे कोई भी बालिग लड़का-लड़की स्वेच्छा से तीन गवाहों के साथ उपस्थित हो कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन दाखिल कर ३० दिनों उपरांत विवाह कर सकता है तथा विवाहित भी,कोर्ट में आवेदन कर मैरिज सर्टिफिकेट प्राप्त कर सकते है वैसे भी आजकल विदेशों में नौकरी कर रहे विवाहित लोगों को मैरिज सर्टिफिकेट देना पड़ता है
इसी तरह इस संसार में कई ऐसे लोग है जो अपने विवाहित जीवन के बंधन से खुश नहीं है उनके जीवन साथी उनकी इच्छा के अनुरूप नहीं है वैवाहिक जीवन में विवाद है,विवाह के बंधन को तोड़ना चाहते हो उनके लिए फैमिली कोर्ट है जहाँ वे विवाह विच्छेद के लिए आवेदन दे सकते है इसके लिए किसी वकील को नियुक्त करने की आवश्यकता नहीं है परन्तु चाहे तो वकील की सलाह ले सकते है .......
.परिवार के ऐसे लोग खास कर पत्नी, संतान,माता-पिता जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हो, अपनी भरण-पोषण के लिए दावा कर सकते है ......
जिनको संतान नहीं है और किसी अनाथ या अन्य को गोद लेकर दत्तक पुत्र या पुत्री बनाना चाहते हो तो कानूनी प्रक्रिया पूरा कर गोद ले सकते है .......
आगे के लेख में हम जारी रखेंगे कोर्ट मैरिज,विवाह विच्छेद,भरण-पोषण के लिए दावा,दत्तक पुत्र या पुत्री को कैसे प्राप्त कर सकते है उसके लिए कानून की प्रक्रिया क्या है .......
चलिए हम मिलते रहेंगे .....अच्छा लगे तो समर्थन कर हौसला बढाइये ,टिप्पणी कीजिये ख़राब हो तो भी टिप्पणी करे कचहरी नामा के सफ़र का आनंद लेते रहें


मंगलवार, 2 जून 2009

कचहरी नामा(३)पेशकार से पंगा

बड़ा ही मज़ेदार किस्सा है ये कचहरी का आप को सोच कर हंसी भी आयेगे और चिराग तले अँधेरा भी दिखाई देगा. कचहरी में पेशकार एक नाम है जिससे कई बार वकील भी खौफ खाते है ये सरकारी नौकर है जो किसी भी प्रकार का दया ना करने की कसम खा कर ही अपनी कोर्ट की दिनचर्या की शुरुवात करते है प्रत्येक हजारी पर इनका चढावा फिक्सड होता है चाहे हजारी पर सीनियर वकील साहेब का हस्ताक्षर हो या किसी जूनियर का प्रत्येक हजारी पर मिलने वाली राशि इनकी बपौती होती है शायद ही ऐसा कोई पेशकार हो जिसने चढावा नहीं लिया हो ........ये तो मैंने बताना भूल ही गया की यदि आप कोर्ट में उपस्थित होते है तो हजारी देनी होगी अन्यथा टाइम पिटिसन देना होता है सुबह-सुबह टाइम पिटिसन देख पेशकार किस तरह का मुंह बनाते है इसकी आप कल्पना कीजिए क्योंकि टाइम पिटिसन में पेशकार को चढवा नहीं चढ़ता बल्कि वकील साहेब की जेब से ५ रूपये का टिकट पिटिसन में देना पड़ता है ............मै बात कर रहा था उस मज़ेदार घटना की जब एक केस में कई मुलजिम थे परन्तु सबके सब होशियार उनकी नियत रहती थी की किसी तरह वकील का फीस मार ले इसके लिए सभी एक साथ हाज़िर नहीं होते कोई एक-दो आता बाकी के गायब हो जाते वकील की फीस मार -मार कर इनकी आदत ख़राब हो चुकी अब इनकी नियत पेशकार के चढावा पर आ गई दो डेट पिटिसन पर दे मारी पेशकार बिना चढावा के पूजा पर क्रोधित थे, उसने पुरे केस का स्टडी किया और पाया की मुलजिम उसे वकील की तरह मासूम समझ रहा है अब बारी थी पेशकार की, उनको औकात बताने की...... इस डेट में जैसे ही बिना चढावे के मुलजिम आकर पिटिसन दिए की पेशकार ने कहा रुको तुम लोगों का वारंट निकला हुआ है ...वारंट सुनते ही मुलजिमों की सारी चतुराई धरी की धरी रह गई क्योंकि वारंट का सीधा सा अर्थ मेहमान बन लाल घर की सैर करना होता है जो कोई भी शरीफ आदमी नहीं चाहेगा उन्होंने मासूम स्वर में कहा हमारे वकील ने तो नहीं बताया पेशकार चट बोल उठा वकील को पैसे देते हो .........नहीं न फिर फोकट में कितनी पैरवी करेंगे ......मुलजिम भागे-भागे वकील के पास गए वकील बेचारा सीधा साधा बोले वारंट तो नहीं था पिछली बार भी मैंने पैरवी की थी वकील मुलजिम के साथ पेशकार के पास पहुँच माजरा पूछे तो पेशकार का ज़वाब था आपके मुव्वकिल ने भारत सरकार को उलट दिया है और साथ ही ये भी कहा की ये लोग बिना चढावा के ही दर्शन कर पुण्य पा रहे है इन लोगों को सरकारी मेहमान बनाना चाहता हूँ कह कर इनलोगों के द्वारा दिया गया पिटिसन को दिखाया जिस पर चिपकाया गया कोर्ट फी उल्टा चिपका था जिस कारण कोर्ट फी पर मुद्रित अशोक स्तम्भ उल्टा था मुलजिमों ने पेशकार के वारंट की धमकी की अच्छी खासी कीमत चुकाई और पेशकार से पंगा न लेने की कसम खा अपनी जान बचाई ....चलिए हम मिलते रहेंगे .....अच्छा लगे तो समर्थन कर हौसला बढाइये ,टिप्पणी कीजिये ख़राब हो तो भी टिप्पणी करे कचहरी नामा का सफ़र चलता रहेगा आप भी यात्रा का आनंद लेते रहें

मेरा ब्लॉग पीछे क्यूँ

मेरा ब्लॉग कई दिनों से १३ घंटे पीछे चल रहा है मैं अपना ब्लॉग कचहरीनामा (२)दर्द की दवा १ जून को सुबह ९.३८ पर पोस्ट किया परन्तु मेरे ब्लॉग पर यह रविवार ३१ मई रात्रि ८.२७ दर्शाता है ऐसा क्यूँ होता है ...क्या ये मेरे साथ हो रहा है या आपके साथ भी ....या फ़िर मेरे ही ब्लॉग के सेटिंग में कुछ गड़बड़ हो गई है .....आप मदद करेंगे यह पोस्ट मै मंगलवार २ जून ८.४४ सुबह को प्रेषित कर रहा हूँ देखता हूँ मेरा ब्लॉग इसे प्रकाशित कर क्या टाइम बताता है

सोमवार, 1 जून 2009

कचहरीनामा (२)दर्द की दवा

कचहरी वास्तव में एक तीर्थस्थल है जहाँ हर धर्म,मज़हब,जाति के लोगों का संगम होता है सभी अपने धर्म मज़हब को भूल दुसरे के दर्द को बाँटने की कोशिश करते है. कचहरी में ही आपसी विवादों का निराकरण होता है एक सा दर्द वाले जब एक जगह बैठते है तो उनका दर्द दूसरो के लिए दवा बन जाती है कचहरी वह ज़गह है जहाँ लोग अपने मुक्कदमे में ज्यादातर गाँव से आते है औसतन कचहरी में आने वाले मुव्वकिल, गवाहों को करीब ४० से ५० किलोमीटर का फासला तय कर आना पड़ता है जो आ गए उन्हें अगली तारीख लेकर जाना है १० बजे से शाम ४ बजे तक कब उनको कोर्ट से पुकार होगा इसकी जानकारी उनको कुछ ही दिनों में हो जाती है इतने लम्बे समय को काटने के लिए अक्सर लोग कचहरी परिसर में ही घूमते रहते है और कचहरी परिसर में होने वाली सामानों की बिक्री का हिस्सा बन जाते है. ज्यादातर कचहरी में दांतों को चमकाने वाला दंतमंजन बन्दर छाप दंतमंजन, देशी तरीकों से बना हुआ अचूक दवाएं, आँखों की रौशनी बढाने का चश्मा, अजगर के खेल जिसमे हमेशा बताया जाता है की किस प्रकार अजगर पुरे मुर्गी ,बकरे को निगल जाया करता है और निगलते हुए दिखायेंगे परन्तु खेल दवा बिक्री के साथ ख़त्म हो जाता है लोग देशी दवाओं से लेकर बन्दर छाप दंतमंजन तक खरीद कर ले जाते है सांप-नेवले का खेल देखने की लिए तो अच्छी खासी भीड़ लग जाती है गांवों में यह भी कहावत है की जो कुछ कही नहीं मिटता कचहरी में मिल जायेगा यानि कचहरी एक प्रकार का देशी ब्यापार मण्डी है जहाँ हर चीज़ बिकती है लोग खरीदते है खुश रहते है हमेशा आते है आपने काम के साथ मनोरंजन भी करते है और फिर वापस घर की तरफ कचहरी की चर्चा करते हुए लौट जाते है कचहरी के अन्दर हर शख्स की आपनी एक पहचान होती है एक नाम होता है कोई अच्छा होता है तो कोई बूरा होता है ......आगे की कड़ी में हम इसकी चर्चा करेंगे ..

रविवार, 31 मई 2009

कचहरीनामा

कचहरी यह एक नाम है जहाँ जाने के नाम से कई लोगों के पसीने छुट जाते है उनकी नज़र में कचहरी सिर्फ दागदार लोगों की ज़गह होती है परन्तु वे ये नहीं जानते की कचहरी में ही विद्वान अधिवक्ता,न्यायाधीश, जिला कलक्टर, अंचलाधिकारी पुलिस-प्रशासन के लोग आपकी सेवा में कार्यरत है ,पर आपको यह जानकर काफी आश्चर्य भी होगा की आप कचहरी कभी जाएँ या न जाएँ परन्तु आपकी कुंडली वहां पहुँच जाती है किसी के ज़न्म से मृत्यु तक का प्रमाण पत्र कचहरी में ही बनेगा तो आप पहुँच गए न कचहरी ...... चलिए मैं आपको इस कचहरीनामा के कई किस्से किश्तों में बताऊंगा काफी मज़ेदार है अब जैसे आपका मोबाईल गुम हो गया हो,शपथ-पत्र के लिए चले आइये स्कूल-कालेज में एड्मिसन लेना हो शपथ-पत्र के लिए चले आइये इस तरह किसी भी छोटी से छोटी बातों के लिए आपको शपथ-पत्र दाखिल करना होगा आप सोचते होंगे की मै सही हूँ फिर भी शपथ-पत्र क्यों तो बात साफ है भैयाजी कोई भी अफसर अपने जिम्मे कोई खतरा नहीं मोलना चाहता है इसलिए आप ही शपथ-पत्र दाखिल कर दीजिए यहीं नहीं अगर आपका दिन आज काटे नहीं कट रहा हो तो भी कचहरी में कई गुनी जादू का खेल से लेकर सांप -भालू का नाच दिखाते मिल जायेंगे कचहरी में आपके पहुँचते ही सबसे पहले दिखने वाला प्राणी कोई वकील ही होगा .....वकील....... इनके बारे में कई किस्से सुनने को मिलते है जिसमे मशहुर जुमला है की वकील कभी सच नहीं बोलता झूठ बोलने के ही पैसे लेता है इस पर कितनी सच्चाई है इसकी चर्चा हम आगे के किश्तों में करेंगे परन्तु यह एक कडुवा सत्य है की वकालत पेशा हर किसी के बस की नहीं जो सामने से बड़ा ही आसान लगता है परन्तु उसके अन्दर किसी केस के स्टडी में लगी मानसिक मेहनत सिर्फ कोर्ट में जिरह या बहस के समय ही दिखती है और एक सत्य यह भी है की वही वकील सबसे अच्छा होता है जिसके पास आप जब चाहे पहुँच जाएं आपनी समस्या बतावे और वह तुंरत समाधान भी खोज ले और बिना फीस के ही चल दे और सबसे बुरा वकील वह है जो परामर्श पर आपनी फीस लेता और आप महसूस करते है की मै बेकार ही वकील के पास गया था इतना तो मै भी जानता था परन्तु आप शायद ही यह महसूस कर पाएंगे की किसी वकील का परामर्श आपको कई अनहोनी परेशानियों से बचाता है वकील कोई मजदूर नहीं की वह आपको कुदाल-हथोडी के साथ दीवाल तोड़ता हुआ दिखेगा वकील की कलम और जुबान का जादू आपके अदृश्य परेशानियों को तोड़ डालता है वास्तव में वकील आपकी कानूनी अड़चनों, आपके परेशानियों को आपसे दूर कर आपको मानसिक शांति पहुचने वाला मसीहा का दूसरा रूप है जिसका आप कभी आदर कर सर नवाते है तो कभी मजाक उड़ते है ..............................हम मिलते रहेंगे आगे के किश्तों में

रविवार, 24 मई 2009

बिना प्याज़-लहसुन के

ये बड़ा ही मजेदार घटना है ,साथ ही एक नया तरह का मजाक जिसकी कल्पना या ब्याखा भी काफी मज़ेदार है। मेरे एक मित्र हैं मिश्रा जी ,ब्राह्मण है शुद्ध शाकाहारी ... मिश्रा जी तो खानपान में प्याज़-लहसुन ले लेते है परन्तु मैडम मिश्रा का प्याज़-लहसुन से परहेज़ है अत: घर से बाहर खान-पान नहीं करती है या कभी बाहर जाना हुआ तो एक तरह से उनका उपवास हो जाया करता है ....घटना ये है की मिश्रा जी को किसी एक बंगाली मित्र ने अपने घर शादी में दावत दी और उन्हें फैमिली संग आने को जोर दिया तो मिश्रा जी ने उन्हें स्पष्ट बता दिया की उनकी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है इस पर उनके मित्र ने बताया की उनकी दादी भी बिना प्याज़-लहसुन की है बस मिश्रा जी ख़ुशी -ख़ुशी उनके घर दावत पर पहुँच गए। खाने के वक़्त सभी लोग साथ बैठ गए खाना परोसा जाने लगा पहले चावल फिर दाल ..फिर सब्जी उसके बाद तली हुई मछली मैडम मिश्रा की थाली में रखी गई अब तो मैडम मिश्रा की हालत मछली देख ख़राब हो गई और मिश्रा जी को तो काटो तो खून नहीं वाली स्तिथी हो गई सामूहिक भोज में बैठे थे उठ भी नहीं सकते प्रतिष्ठा का प्रश्न था किसी तरह कुछ मिनट समय काट निकल चले की उनके बंगाली मित्र मिले मिश्र जी बोल उठे क्या मजाक है मैंने पहले ही कहा था की मेरी पत्नी बिना प्याज़-लहसुन के है और तुम ये ..... उनके मित्र को कुछ समझ में नहीं आया उसने बड़ा ही मासूम स्वर में कहा हमारे खाने में तो प्याज़-लहसुन तो थी ही नहीं .... दरअसल बंगाली समुदाय में मछली को शुभ माना जाता और मछली बिना प्याज़-लहसुन के तल के बनाई गई थी और मिश्र जी बिना प्याज़-लहसुन का मतलब तो आप समझते ही है

रविवार, 3 मई 2009

आओ इस गर्मी का आनंद लें




आप कल्पना करते होंगे सर्दी के मौसम में धुप की, गर्मी के मौसम में छाया, ठंढी हवा की पर क्या आपने कभी इन दिनों हो रहे तपिस ......गर्मी का आनंद लिया है .नहीं ना ... आप गर्मी से मत घबराइये........ आनंद ले ,मौसम का आनंद ....आपने द्वारा प्राकृतिक से छेड़छाड़ करने ,नदी -नालों को बंद कर उस पर घर बना कर रहने ,पेड़ -पौधों को काटने ,तालाब को समतल मैदान बनाने धरती माता के शरीर में छेद बोरिंग कर धरती के अन्दर के पानी को बाहर निकल निर्दयतापूर्वक ख़त्म करने का आनंद का ही तो दूसरा नाम सूर्य देवता की प्रचंड प्रकोप है ये गर्मी ............उफ़ ये गर्मी ..............हाये ये गर्मी ........ ये मेरे ही शहर का नहीं पुरे देश का यही हाल है ..........कभी मेरा शहर दूसरा शिमला के नाम से जाना जाता था ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी हमारी रांची, आज सिर्फ़ राजधानी है और हमलोग राजधानी की कीमत चुका रहें है अचानक आए बढती जनसँख्या ,आबादी के साथ गाड़ियों के द्वारा फैलते प्रदुषण, हरे भरे जंगलों की जगह कंक्रीटों के उग आए नए आसियाने जिसे गर्व से हम मनुष्य फ्लैट कहते है जिधर देखो उधर नज़र आयेंगे ये नये जंगल ..............और इस जंगल बनाने की कीमत है.... धरती को छेद कर धरती के नसों में बहने वाले लहू यानि हमें जिंदा रखने वाली बेशकीमती अमृत ज़ल,पानी water या हम जो भी नाम दें निकाल लेना, बहा देना उस वक्त हम कल्पना भी नहीं करते की ये अमृत है परन्तु आज जब गर्मी चरम पर है तो हम उसी पानी के लिए तरस रहें है ......... हमारा शहर जहाँ पारा ३७ डिग्री पार करते ही वर्षा होना था गर्मी के दिनों में भी रात को सोते समय चादर की ज़रूरत पड़ती थी आज हम ४३ डिग्री पारे का आनंद ले रहे है या यों कहे की भुगत रहें है तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी ..........बड़ा मज़ा आ रहा है न तो दिन में चैन न ही रातों को ठीक से नींद आती है और ये गर्मी कहती है की बेटा या तो आनंद तो या फ़िर भुगतो हम तो गर्मी का आनंद ले रहें है आप क्या कर रहें है ...?

बुधवार, 22 अप्रैल 2009

क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

लल्लू जी काफी परेशान थे, चुनाव का वक्त था उसने काफी चुनाव देखें है पर हर चुनाव उसे एकदम नया सा लगता है , इस बार तो हर उमीदवार लल्लू जी की खुशामद में जी-हुजूरी कर रहे थे और हमारे लल्लू जी की खास कमजोरी है की किसी को नाराज़ नहीं कर सकते अत: चुनाव के दिन अपने मतदान केन्द्र में जाकर उसने सभी चुनाव चिन्हों के आगे लगे बटन को दबा दिया और बहुत खुश हो कर बाहर निकले उसके बाहर निकलते ही प्रत्याशी उनसे पूछते मुझे वोट दिया तो लल्लू जी खुशी से कहते हाँ, मैंने तुम्हारे चुनाव चिन्ह का बटन दबा दिया ...नेता भी खुश और लल्लू जी भी खुश ....क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।

मंगलवार, 21 अप्रैल 2009

धन्यवाद ३६५



कल ३६५ न्यूज़ चैनल के द्वारा रांची जिला स्कूल परिसर में देश के प्रमुख दो राजनितिक पार्टी कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला स्तरके नेताओं के साथ जनता का अदालत का लाइव टेलीकास्ट किया जिसमे वर्तमान रांची के विधायक भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ज़नता के सवालों के आगे इन नेताओं के पसीने छूटते साफ दिखाई पड़ रहे थे, इनकी बेशर्मी देखिये की सवाल कुछ होता तो ज़वाब कुछ दे रहे थे बाद में इस बिन्दु पर प्रशन किया गया तो इनकी हालत ख़राब थी दोनों ही राजनितिक पार्टी सिर्फ़ एक-दुसरे पर आरोप लगा बचना चाह रहे थे परन्तु जनता के उग्र प्रश्न इनकी इनकी पोल खोलने लगी मेरे ख्याल से कल पहली बार इन्हे जनता के वजूद का अहसास हुआ होगा ................... इसके इसके भी मैं समझ सकता हूँ की ये गैंडा से भी मजबूत खाल वाले प्राणी सत्ता में आने के बाद कुछ नहीं करेंगे क्योंकि ३६५ न्यूज़ चैनल न तो प्रत्येक वर्ष इस तरह का कोई कार्य करेगा न ही उनसे प्रेरित हो कोई अन्य जनता को जागरूक करने करने के लिए प्रयास करेगा ये चुनाव की आंधी है हर रंग के हवाओं का सिर्फ़ दिखाई दिया रहना जारी रहेगा ...............................जय हिंद

सोमवार, 20 अप्रैल 2009

नागपुरी फिल्म 'झारखण्ड कर छैला' का ट्रेलर



झारखण्ड में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का बनना काफी पहले से शुरू हो चुका है फ़िल्म एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आपनी बात लोगों तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है वैसे यदि हम कामर्सियल फिल्मों की बात को यदि छोड़ दे तो कई ऐसी फिल्में है या फ़िर कहें कई इसे निर्देशक है जिनकी फिल्म उनकी सोच, उनकी बौद्धिक स्तरको बताता है इन दिनों झारखण्ड में काफी फिल्में मसलन, डाक्यूमेंट्री, मनोरंजक ,एजुकेशनल, विज्ञापन फिल्म बन रही है इन्ही फिल्मों की एक कड़ी है 'झारखण्ड कर छैला' जिसे क्षेत्रीय बोली 'नागपुरी' में बनाया गया है, जिसे जल्द ही सिनेमा घरों में दिखाया जायेगा\ फिल्म का ट्रेलर आप यहाँ देख सकते है, साथ ही चाहें तो http://www.youtube.com/watch?v=Rx_lLHCcJm0पर भी देख सकते है