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शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

मेरे विद्वान चाचा

मेरे एक चाचा है ,एकदम से विद्वान ....वे जो सोचते है समझिए की ब्रह्मा की लकीर है इस पर कोई भी तर्क-वितर्क उनके पल्ले नहीं पड़ता लिखने के भी शौकीन है ,खूब लिखते है ...अच्छे लेखकों में गिने ज़ाते है खूब छपते भी है लिखते वक़्त दिमाग़ सातवें आसमान पर रहता है और छपने बाद सीना फुलाए सिर उँचा कर इस कदर घूमते है की जैसे मैदान मार लिया हो , मुहल्ले में ,समाज मे सभी लोग डरते है ..........और मेरे चाचा आपनी ज्ञान को हमेशा नाई की दुकान, पान की दुकान पर बाँटते चलते है ....आप उनसे इस संसार, इससे हट कर यदि कोई और भी संसार हो उस पर भी किसी भी विषय पर बातें करे आपको चाचा हाज़िर ज़वाब मिलेंगे पर एक दिन बड़ा दुखद समाचार हो गया मेरे चाचा को उनके चाचा मिल गये बड़ी लंबी मुलाकात का दौर रहा वाद-विवाद से लेकर ज़ूतम-पैज़ार तक की नौबत आई अंततःचाचा को औक़ात पता चल गया,अभी वे कोपभवन मे हैं .

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे ---जैसे को तैसा मिल ही गया।

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  2. बड़े विद्वान हैं..जब निकले कोप भवन से तो फोटू दिखलाना. :)

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  3. सूरज भाई
    जब तक चाचा कोपभवन में हैं
    उनकी रचनाओं को ब्‍लॉगजमीन पर
    धूप ही दिखवा दो
    थोड़ी सी गर्माहट हम भी ले लेंगे
    जय राम जी की।

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