LATEST:


विजेट आपके ब्लॉग पर

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

एक था राजा

मैंने सुना था की लोकतंत्र के चार मज़बूत स्तम्भ है मैं सोचता हूँ की कैसा होगा होगा वह मज़बूत अदृश्य स्तंभ क्या चारों स्तम्भ आपस में लड़ते नहीं होंगे अगर ये लड़ते होंगे तो इनमे शक्तिशाली कौन होगा ...अगर पांचवा स्तम्भ होता तो ...मुझे लगता है पांचवे स्तम्भ शुरू में खुद को गौरान्वित महसूस करता होगा ..परन्तु बाद में शायद घमंड करता होगा अपने सर्वश्रेष्ट होते का ..यदि कोई छठा या फिर सांतवा स्तम्भ होता तो ... खैर ... बात बहुत पहले की नहीं है यही कोई दो- चार महीने पहले की होगी... एक राजा था .. लोकतंत्र का राजा ..आप आश्चर्य न करे लोकतंत्र में भी राजा होता है उसके नाम या कहें की संज्ञा अलग-अलग हो सकती है आप चाहें तो प्रधानमंत्री भी कह सकते है बात लोकतंत्र की थी और आप तो जानते ही है लोकतंत्र यानि इस देश के लोगों की यह गलतफहमी की वही सर्वेसर्वा है यानि जनता ही देश की मालिक है ..और इसी गलतफमी में वे अपनी पूरी जिंदगी ब्यातित कर देते है कभी तेजी में बढ़ी महंगाई की मार पर रोते है तो कभी विरोध होने पर कुछ दाम घटी महंगाई पर खुश होते है और महंगाई भी इनसे ऐसी दोस्ती कर चुकी है की पीछा ही नहीं छोड़ती इस देश में चूँकि लोकतंत्र है अत: राजा का भी चुनाव होता है और यही वक़्त होता है जब गलतफहमियां बढ जाती है चुनाव में खडा आदमी जब उनके पास जाता है, तो जनता सोचती है की देख मेरे से गिड़गिडा रहा है पर सचाई तो ये है की आप सिर्फ मोहरे है सामने वाला सिर्फ आपको छलावा देने के लिए नाटक कर रहा है जबकि जीत का सेहरा उनके गले होगा जिसके पास ताक़त होगी पैसे होंगे इन्ही पैसों से वह लोकतंत्र की ताज़ा नीव युवा को अपने शब्दजाल में फांश लेंगे युवा भी अभी की सोच अपनी ताक़त उसे जीताने में लगा देगा और राजा बनने के बड़े ब्यापारी अपने शब्दों में वर्तमान राजा को कूटनीति के तहद कमजोर राजा की संज्ञा से विभूषित करेंगे क्योंकि कमजोर राजा की संज्ञा ही जनता के मन में वर्तमान राजा के प्रति आशक्ति को कम करेगी जिसका फायदा हर हाल में उठाना है क्योंकि कमज़ोर और शक्तिशाली ये दो शब्द ही अलग-अलग छवि दिखाते है कोई व्यक्ति यदि कम बोलता है तो वह कमज़ोर समझा जाता है जबकि चिल्लाने वाला ताक़तवर हो जाता है और हम लोकतंत्र वाले मज़बूत, ताक़तवर पसंद करते है क्योंकि चिल्लाने वाले की भाव-भंगिमा से गूंगे-बहरे भी तैश में आ जाते है ऐसा तैश की कुछ भी तोड़ दे,विवादस्पद बना दे परन्तु कमजोर का क्या ...कही भी चुपचाप अच्छा कर रहा हो ....हल्ला ही नहीं करता.. तो पता कैसे चलेगा और यदि पता चल गया तो हम कह देंगे की दुसरे के इशारे पर करता है ..लोकतंत्र है ..कहने की, बोलने की छुट है और बाज़ार में छुट पर ही तो लुट है और ये लोकतंत्र है भैया यानि आपने को एक दिन के राजा होने ख्वाब देखने का ग़लतफ़हमी पलना जबकि बाहुबली की ही हमेशा जीत होती है उनके बिछाए शतरंज पर हम सिर्फ मोहरे हो जाते है उनकी चाह ही शाह और मात है

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुमन व्यथित हो देखता गुलशन है बेहाल।
    सही लोग को चुन सकें छूटेगा जंजाल।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं