रविवार, 31 मई 2009
कचहरीनामा
रविवार, 24 मई 2009
बिना प्याज़-लहसुन के
रविवार, 3 मई 2009
आओ इस गर्मी का आनंद लें
आप कल्पना करते होंगे सर्दी के मौसम में धुप की, गर्मी के मौसम में छाया, ठंढी हवा की पर क्या आपने कभी इन दिनों हो रहे तपिस ......गर्मी का आनंद लिया है .नहीं ना ... आप गर्मी से मत घबराइये........ आनंद ले ,मौसम का आनंद ....आपने द्वारा प्राकृतिक से छेड़छाड़ करने ,नदी -नालों को बंद कर उस पर घर बना कर रहने ,पेड़ -पौधों को काटने ,तालाब को समतल मैदान बनाने धरती माता के शरीर में छेद बोरिंग कर धरती के अन्दर के पानी को बाहर निकल निर्दयतापूर्वक ख़त्म करने का आनंद का ही तो दूसरा नाम सूर्य देवता की प्रचंड प्रकोप है ये गर्मी ............उफ़ ये गर्मी ..............हाये ये गर्मी ........ ये मेरे ही शहर का नहीं पुरे देश का यही हाल है ..........कभी मेरा शहर दूसरा शिमला के नाम से जाना जाता था ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी हमारी रांची, आज सिर्फ़ राजधानी है और हमलोग राजधानी की कीमत चुका रहें है अचानक आए बढती जनसँख्या ,आबादी के साथ गाड़ियों के द्वारा फैलते प्रदुषण, हरे भरे जंगलों की जगह कंक्रीटों के उग आए नए आसियाने जिसे गर्व से हम मनुष्य फ्लैट कहते है जिधर देखो उधर नज़र आयेंगे ये नये जंगल ..............और इस जंगल बनाने की कीमत है.... धरती को छेद कर धरती के नसों में बहने वाले लहू यानि हमें जिंदा रखने वाली बेशकीमती अमृत ज़ल,पानी water या हम जो भी नाम दें निकाल लेना, बहा देना उस वक्त हम कल्पना भी नहीं करते की ये अमृत है परन्तु आज जब गर्मी चरम पर है तो हम उसी पानी के लिए तरस रहें है ......... हमारा शहर जहाँ पारा ३७ डिग्री पार करते ही वर्षा होना था गर्मी के दिनों में भी रात को सोते समय चादर की ज़रूरत पड़ती थी आज हम ४३ डिग्री पारे का आनंद ले रहे है या यों कहे की भुगत रहें है तो कोई अतिशोक्ति नहीं होगी ..........बड़ा मज़ा आ रहा है न तो दिन में चैन न ही रातों को ठीक से नींद आती है और ये गर्मी कहती है की बेटा या तो आनंद तो या फ़िर भुगतो हम तो गर्मी का आनंद ले रहें है आप क्या कर रहें है ...?
बुधवार, 22 अप्रैल 2009
क्यों किसी को नाराज़ किया जाए।
मंगलवार, 21 अप्रैल 2009
धन्यवाद ३६५
कल ३६५ न्यूज़ चैनल के द्वारा रांची जिला स्कूल परिसर में देश के प्रमुख दो राजनितिक पार्टी कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी के जिला स्तरके नेताओं के साथ जनता का अदालत का लाइव टेलीकास्ट किया जिसमे वर्तमान रांची के विधायक भारतीय जनता पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे, ज़नता के सवालों के आगे इन नेताओं के पसीने छूटते साफ दिखाई पड़ रहे थे, इनकी बेशर्मी देखिये की सवाल कुछ होता तो ज़वाब कुछ दे रहे थे बाद में इस बिन्दु पर प्रशन किया गया तो इनकी हालत ख़राब थी दोनों ही राजनितिक पार्टी सिर्फ़ एक-दुसरे पर आरोप लगा बचना चाह रहे थे परन्तु जनता के उग्र प्रश्न इनकी इनकी पोल खोलने लगी मेरे ख्याल से कल पहली बार इन्हे जनता के वजूद का अहसास हुआ होगा ................... इसके इसके भी मैं समझ सकता हूँ की ये गैंडा से भी मजबूत खाल वाले प्राणी सत्ता में आने के बाद कुछ नहीं करेंगे क्योंकि ३६५ न्यूज़ चैनल न तो प्रत्येक वर्ष इस तरह का कोई कार्य करेगा न ही उनसे प्रेरित हो कोई अन्य जनता को जागरूक करने करने के लिए प्रयास करेगा ये चुनाव की आंधी है हर रंग के हवाओं का सिर्फ़ दिखाई दिया रहना जारी रहेगा ...............................जय हिंद
सोमवार, 20 अप्रैल 2009
नागपुरी फिल्म 'झारखण्ड कर छैला' का ट्रेलर
झारखण्ड में क्षेत्रीय भाषा की फिल्मों का बनना काफी पहले से शुरू हो चुका है फ़िल्म एक ऐसा माध्यम है जिसके जरिये आपनी बात लोगों तक आसानी से पहुँचाया जा सकता है वैसे यदि हम कामर्सियल फिल्मों की बात को यदि छोड़ दे तो कई ऐसी फिल्में है या फ़िर कहें कई इसे निर्देशक है जिनकी फिल्म उनकी सोच, उनकी बौद्धिक स्तरको बताता है इन दिनों झारखण्ड में काफी फिल्में मसलन, डाक्यूमेंट्री, मनोरंजक ,एजुकेशनल, विज्ञापन फिल्म बन रही है इन्ही फिल्मों की एक कड़ी है 'झारखण्ड कर छैला' जिसे क्षेत्रीय बोली 'नागपुरी' में बनाया गया है, जिसे जल्द ही सिनेमा घरों में दिखाया जायेगा\ फिल्म का ट्रेलर आप यहाँ देख सकते है, साथ ही चाहें तो http://www.youtube.com/watch?v=Rx_lLHCcJm0पर भी देख सकते है
शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009
सावधान
तुम्हारे असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
यह ईमानदारी का रोग
कही न कही भटक रहा है
सावधान
वह एक ईमानदारी आदमी है
सावधान
उससे दूर रहों
सावधान
वह अछूत है
सावधान
उसके समीप आने से
ईमानदारी का रोग लग सकता है
सावधान
ईमानदारी लाइलाज बीमारी है
वह भूखा है
उसका परिवार भूखा है
हर रोज ये
ज्वालामुखी की तरह
निकलने को
बेचैन रहता होगा
परन्तु सावधान
कहीं
ये तुम्हे
रोगग्रस्त न कर दे
ईमानदारी का रोग न लगा दे
वैसे
बाज़ार में
ईमानदारी का एंटी वाय्टीक
भ्रस्टाचार,बेईमानी मौजूद है
बिना मोल उपलब्ध है
क्या चाहोगे
ईमानदारी?
नहीं ना
इसे बस
अपने अन्दर
असंख्य नसों की
अँधेरी सुरंगों में
भटकने दो
ज्वालामुखी पनपने दो
विस्फोट कभी तो होगा
सावधान,
ईमानदारी तुम्हारी नसों में जिंदा है
गुरुवार, 16 अप्रैल 2009
एक था राजा
