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शनिवार, 28 जनवरी 2012

कितना वक़्त चाहिए....


कई प्रश्न  मन में उठते है ...मसलन ...इक नए राज्य को बिकसित होने में कितना समय चाहिए ...पांच साल...दस साल ..............हमारे झारखण्ड को बने हुए बारह साल हो चुके है ...... सन २००० में इसका जन्म हुआ था इससे पूर्व यह बिहार के नाम से जाना  जाता था झारखण्ड के निर्माण की बात उठी तो मन काफी प्रसन्न था .....उम्मीद  थी की झारखण्ड से हमारी एक नई पहचान बनेगी .....देश में कही भी हम सर उठा कर घूमेंगे ....क्योंकि जब यह राज्य बिहार था तो कही भी यह बताने पर की हम बिहार से आते है हमें काफी गिरी हुई नज़रों से देखा जाता था ....बिहार ...बिहारी अन्य राज्यों में दबंग ....लाठी के बल पर जीने वालों  की दृष्टि से देखा जाता था तात्कालिक बिहार की राजनैतिक ब्यवस्था और बिहारी मानसिकता दुसरे ज़गहों पर हंसीं का पात्र बन चुकी थी ......हम खुद पर कितना ही गर्व कर लेते परन्तु अन्य राज्यों पर जाते ही हमें हमारा परिचय राज्य का नाम जानते ही जो हाल होता उसे भुक्तभोगी ही बता पता इसी स्थिति  पर खुद को कायम रखने के लिए बिहारी छवि को बरक़रार रखना भी मज़बूरी हो जाती ..........हमारा क्षेत्र छोटानागपुर क्षेत्र के रूप में जाना जाता था ......आदिवासी बहुल क्षेत्र ....खनिज सम्पदा से भरा क्षेत्र ....जहाँ के मूल वासी ....सदान..... जिन्हें शायद खनिजों की उपयोगिता का सही ज्ञान नहीं रहा हो ....इस पुरे छोटानागपुर पर ....खनिज सम्पदा पर इस क्षेत्र से बाहर के लोगों का इक तरह से अधिकार हो गया ....मूलवासी यहाँ ज़्यादातर मजदूर हो गए ........... मूलवासी ..आदिवासी की मिलनसार एव हडिया जो चावल से बना एक पेय पदार्थ है जिसे पीने से नशा होता है , के सेवन ने अन्य जगहों से आने वालों को शोषण करने के लिए उकसाया ..........छोटानागपुर  क्षेत्र से बाहरी लोगों  के द्वारा अपना अधिपत्य कायम रखने के लिए इनके बीच जो संभव हो सका हर हथकंडा अपनाया गया ......खैर ...आज हम बिहार और झारखण्ड की तुलना करते है तो बिहार में जैसा की हम समाचार पत्रों में पढ़ते है झारखण्ड की तुलना में काफी बिकसित हो चूका है .....खुद मैंने बिहार की राजधानी पटना में जब आज से तीन वर्ष पूर्व गया तो पाया की पटना में कई जगहों में ओवर ब्रिज  बन गए है वहां की ट्राफिक काफी अच्छी हो चुकी है .......पटना के जिस रास्तों पर मैं पैदल चला करता था वे मुहल्लें ,रास्ते सभी नए हो गए थे .......और हमारा झारखण्ड अपने स्थापना के दिन से ही सिर्फ नई  राजधानी का एनाउंस की करता रहा ......सरकार  नई राजधानी के भूमि चयन करने में कई इलाकों  में भूमि देखती ही रही और उनकी ढुलमुल निति के कारण कई  भूमि दलालों  मालामाल हो गए ... कर दिए गए ....नई राजधानी के लिए जिस तरफ सरकार की नज़र जाती बाते सिर्फ कागजों पर होती और इस इलाके के  भूमि मालिकों   के साथ ज़मीं दलाल सिर्फ एग्रीमेंट कर भूमि काफी मुनाफा कमा कर बिक्री करते रहे ......राजधानी में बसने की चाहत लिए अगल - बगल शहरों के तथा कारबार के किये पडोसी राज्यों के लोग ताबड़- तोड़ बिना देखे  ज़मीं खरीदते गए ........दलाल मालामाल होते गए .....नए -नए बिल्डर आये ....प्रलोभन देते गए भूमि बेचते रहें ....इन सबके बीच न तो भूमि खरीदने वालों ने यहाँ के लोकल  कानून को देखा न ही बिल्डर और भूमि बिक्रेता ने कानून को देखने की कोशिश की ...जबकि छोटानागपुर के लिए विशेष "छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम " है जिसके कई धारा यहाँ की भूमि के खरीद - बिक्री से सम्बंधित है ....................

मंगलवार, 24 जनवरी 2012

कल एक व्यक्ति से मुलाक़ात हुई, बेचारे अपने मोबाइल से किसी सज्जन से कह रहे थे की आज छुट्टी है ....जानकारी के लिए बता दूं की झारखंड सरकार ने नेताजी जयंती पर २३ जनवरी को सार्वजनिक छुट्टी की घोषणा की है ...दूसरी तरफ से पुछे जाने की क्या चीज़ की छुट्टी है ...व्यक्ति इधर-उधर झँकते हुए जवाब देते है की किसी नेता की जयंती है या शायद मृत्यु दिवस है ........

सोमवार, 23 जनवरी 2012

इक व्यक्ति शाम को काम करके थक कर अपने घर लौटता है ...घर में भरा-पूरा परिवार है परंतु खुद को अकेला महसूस करता है क्योंकि परिवार के लोग टी वी देखने में व्यस्त रहते हैं, कुछ समय के लिए जैसे ही सीरियल में ब्रेक पता है परिवार का ध्यान व्यक्ति पर जाता है और चाय या पानी मिलता है .....

सोमवार, 19 दिसंबर 2011

फेसबुक, सावधान क्योंकि कुछ फ्रेंड वायरस भी होता है ...

क्योंकि हर एक फ्रेंड जरूरी होता है ...स्लोगन आपने सुना होगा परन्तु फेस बुक के हर फ्रेंड बेवजह एक गन्दी विडियो के कलैप एवं उसके वायरस से बदनाम होते जा रहे है .......लगभग फेसबुक के सभी यूज़र के पास स्वत फ्रेंड के मार्फ़त चाहे आपके फ्रेंड ने उसे वालपेपर पर पोस्ट किया हो तो भी न किया हो तो भी दोस्तों के नाम से वालपेपर पर चिपका मिलेगा .....आप यदि लालच वश उसे देखने की चेष्टा करेंगे की आपके दोस्तों पर शामत आ गिरेगी .....आपके सभी दोस्तों के वालपेपर  पर यह वायरस आ जायेगा ....और आप मुफ्त हुए बदनाम .....दोस्तों फेसबुक को यह पता है पर अधिकारी इसे हटा पाने में अभी अक्षम है ....इस वायरस से आपका डाटा नष्ट हो सकता है .....फेसबुक, सावधान  क्योंकि कुछ फ्रेंड वायरस  भी होता है ... 

शुक्रवार, 16 दिसंबर 2011


नहीं जानता मैं कि
जीतन मरांडी
रंगकर्मी का नाम है
नहीं जानता मैं
वह निर्दोष है या दोषी
पर
सच तो ये है
कि . लोग मारे गये
चिलखारी कांड में
या शायद
पूरी घटना ही काल्पनिक हो....
अपने बेटे के शव को देखता
बाबूलाल मरांडी की तस्वीर
शायद मेरी नज़रों का धोखा हो
यदि कहीं कोई मरा हो
यदि कहीं कोई हत्या हुई हो
यदि ये सत्य है
तो
कोई तो हत्यारा रहा होगा
कौन उसे ढूंढेगा
पुलिस,गाव के लोग,
जश्न मानते लोग या दुखी,पीड़ित लोग
या फिर एक प्रश्न चिन्ह बन कर रह जाएगा
चिलखारी

गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011

मगरमच्छ की आंसु बहा संवेदनाएं प्रकट कर

क्योंकि हम सिर्फ दुःख प्रकट कर सकते है उनके तकलीफों को महसूस कर सकते है परन्तु जिसे उन्होंने खोया है इसकी पूर्ति नहीं किया जा सकता है. ये बात मैं उन सन्दर्भ में कह रहा हूँ ...कल हमारे शहर में दो आटो में सामने से सीधी टक्कर हो गई जिसमे एक आटो में स्कूल के बच्चे भरे थे इनमे से एक १२ वर्ष का बच्चा अब इस दुनिया में नहीं रहा, कई बच्चे घायल है ..... इसी तरह कल ही एक आटो दुर्घटना में एक स्कूल की छात्रा भी स्वर्गवास हो गई ....आखिर ऐसा क्यों होता है जबकि हमारे यहाँ का पूरा प्रशासन आटो चालकों को सुधरने में लगा है ..... आखिर कब तक आटो चालक खुद  को गरीब और प्रशासन का सताये बता कर अपनी मन मर्जी करते रहेंगे ..अमूमन हमने कई शहरों में देखा  है आटो वाले अपनी मन मर्जी पर जीतें है, सड़कें उनकी बाप की हो जाती है जहाँ चाहा आटो रोकी , जैसे चाहा चल पड़े  चाहें किसी को कुछ भी हो जाये .....ट्राफिक पुलिस जिसकी जिम्मेवारी ट्राफिक व्यवस्था को देखनी है ..ज्यादातर अवैध वसूली में लगे रहते है ....और हम देखा कर अनदेखा कर देतें है क्योंकि हमारे पास समय नहीं रहता या फिर ये रोज़मर्रा की बातें हो गई अत: ध्यान नहीं जाता दुर्घटनाएं होने पर हम मगरमच्छ की आंसु बहा संवेदनाएं प्रकट कर फिर रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो भूल  जाते ....क्यों   
 




गुरुवार, 6 अक्टूबर 2011

ना जाने कब किस गली में कोई रावण अंकल मिल जाए

आज विजयदशमी है, आज ही के दिन युद्ध में रावण सर पराजित हुए और उनकी मौत हो गई, राम की विजय हुई, राम जी हमारे देवता है,जो हमारे मन के अंदर विराजमान है,इतना ज़्यादा की राम के नाम पर ही एक राजनैतिक पार्टी सत्ता में आई, मंदिर बनाने का वायदा किया...... फिर भूल गये....हम भी भूल गये  क्योंकि हमारी राजनैतिक पार्टियाँ नित्य कोई नये मुद्दे छोड़ पुराने को भूलने पर विवश कर देती है...... आज विजयदशमी पर फिर राम-रावण की बात होगी,असत्य पर सत्य के जीत की बात होगी रावण को आज फिर असत्य,अज्ञानता,पाप का प्रतीक माना जाएगा और राम तो हमारे दिलों में है इतना की आज भी हम सीता की अग्नि-परिक्षा लेने में पिछे नहीं हटते ..... और सीता भी अब कहती है यार! जब अग्नि-परीक्षा देनी ही है तो तुम्हरे साथ वनवास क्यों ? कुछ तो खुल कर जीने दो...जीने का भरपूर मज़ा लेने दो ना जाने कब किस गली में कोई रावण अंकल मिल जाए और अग्नि-परीक्षा देनी पड़ जाए.....

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

घर के दीमक से लड़ाई

बधाई! समस्त देशवासियों को अपने ही घर के दीमक से लड़ाई जीतने की  पहले जश्न की  बधाई! परन्तु सावधान !अपनी राजनीति के चालों से पानी में भी आग लगाने की जादू जानने वाले अभी सहमति तो दे रहे है परन्तु क्या ये मौका का फायदा उठाने वाले लोग हमेशा आपका साथ देंगे . 
 झारखण्ड में लोकायुक्त तो है परन्तु उन्हें कोई अधिकार  नहीं दिया गया है जिससे उनका रहना या न रहना  कोई मायने नहीं रखता, पंचायत चुनाव करा दिए गए,पार्षदों का चुनाव हो गया परन्तु अभी तक इन्हें अधिकार नहीं दिया गया है. बिना अधिकार के ही क्या मुखिया, पार्षद अपना समय गवां देगे या फिर इनकी काम करने की इच्छा ख़त्म हो जाएगी तब इन्हें अधिकार मिलेगा

बुधवार, 10 अगस्त 2011

वाह रे चाउमीन

            करीब 10-15 वर्ष पूर्व हमारे शहर में जब रथ यात्रा का मेला लगा करता था तो मेला में सबसे खास बात मेला में मिलने वाला खाना पूरी और कोहड़ा का सब्जी हुआ करता था जो सभी लोग बड़े ही चाव से खाते थे ,उसे  एक तरह से भगवन जगरनाथ का प्रसाद माना जाता था परन्तु समय के साथ सब बदल गया अब पूरी और कोहड़ा की जगह चाउमीन ने ले ली है सस्ता और सुलभ.

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

बाबा कहते है , ५००/- एव १०००/- के नोटों को बंद करो ये काला
 धन के सहायक है, मैंने भी देखा हमारे यहाँ के लोग 10, 20, 50, १००/- के नोटों को आराम से रख लेते है,  परंतु ५००/- या १०००/- के नोट आपने दिया नहीं की उसे हाथों से ऊपर उठा  कर उलट पलट  कर देखने  लगते है  जैसे ५००/- या १०००/- के नोटों को कभी देखा  ही न हो और  आप  अपने आपको  अपराधी सा महसूस करेंगे, क्या आपने कभी अनुभव किया  है  कि  कभी किसी अनजान जगह पर ज़रूरत पड़ने पर ५००/- या १०००/- के छुट्टा कराने पर लोग आपको शक कि  नज़र से  देखते है