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गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

मगरमच्छ की आंसु बहा संवेदनाएं प्रकट कर

क्योंकि हम सिर्फ दुःख प्रकट कर सकते है उनके तकलीफों को महसूस कर सकते है परन्तु जिसे उन्होंने खोया है इसकी पूर्ति नहीं किया जा सकता है. ये बात मैं उन सन्दर्भ में कह रहा हूँ ...कल हमारे शहर में दो आटो में सामने से सीधी टक्कर हो गई जिसमे एक आटो में स्कूल के बच्चे भरे थे इनमे से एक १२ वर्ष का बच्चा अब इस दुनिया में नहीं रहा, कई बच्चे घायल है ..... इसी तरह कल ही एक आटो दुर्घटना में एक स्कूल की छात्रा भी स्वर्गवास हो गई ....आखिर ऐसा क्यों होता है जबकि हमारे यहाँ का पूरा प्रशासन आटो चालकों को सुधरने में लगा है ..... आखिर कब तक आटो चालक खुद  को गरीब और प्रशासन का सताये बता कर अपनी मन मर्जी करते रहेंगे ..अमूमन हमने कई शहरों में देखा  है आटो वाले अपनी मन मर्जी पर जीतें है, सड़कें उनकी बाप की हो जाती है जहाँ चाहा आटो रोकी , जैसे चाहा चल पड़े  चाहें किसी को कुछ भी हो जाये .....ट्राफिक पुलिस जिसकी जिम्मेवारी ट्राफिक व्यवस्था को देखनी है ..ज्यादातर अवैध वसूली में लगे रहते है ....और हम देखा कर अनदेखा कर देतें है क्योंकि हमारे पास समय नहीं रहता या फिर ये रोज़मर्रा की बातें हो गई अत: ध्यान नहीं जाता दुर्घटनाएं होने पर हम मगरमच्छ की आंसु बहा संवेदनाएं प्रकट कर फिर रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो भूल  जाते ....क्यों   
 




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