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रविवार, 13 जनवरी 2013

पत्थर है हैरान

पत्थर है हैरान, परेशान, अंजान


क्योंकि

उस बच्चे ने पत्थर जो पकड़ी

तो शीशा चूर-चूर हो गया

उस आदमी ने गुस्से में पत्थर जो दे मारा

किसी की मौत हो गई

उस कलाकार ने पत्थर को तराशा

तो भगवान बन गया

उस कारीगर ने पत्थर को सजाया

तो मकान बन गया ..

4 टिप्‍पणियां:

  1. पत्थर की महत्ता बताटी सुन्दर रचना |
    आशा |

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  2. जाकी रही भावना जैसी.....

    अच्छी रचना,गहन भाव...
    अनु

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  3. @ सूरज खन्ना जी, 'पत्थर है हैरान' जैसी श्रेष्ठ रचना के लिए साधुवाद।
    इस रचना पर मेरा ठहराव ही मेरी ओर से सराहना समझें।

    "पत्थर चोट देकर भी
    हुई वेदना महसूस न करे ..... तो पत्थर दिल कहलाये।
    पत्थर दिल होकर कोई
    आर्त पुकारों को अनसुना करता जाए .....तो पथराव को उकसाये।
    आशा के रेगिस्तान में
    इंतज़ार जब अपनी सरहद न पाए .......तो थककर आँखें पथरायें।
    कण-कण परस्पर आलिंगन से
    स्व-आर्द्रता सुखा जुड़ता चला जाए ....... तो पत्थर रूप पाये।
    और वही जरूरत पर स्वभाव बदल
    आँसू से पिघले,
    लोहे से मिल गले,
    शत्रु चोटों पर मचले ........ तो क्यों न पारस बतायें।

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