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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

याद करों जनी शिकार

याद करो तुम तपकरा,कोयलकारो,नगडी


जब आज़ाद देश के सिपाही

तुम्हारी ही ज़मीन से

तुम्हारे पुरखों की यादों को

मिटाने के लिए

तुम्हे मारना चाहते थे

तुम्हे भागना चाहते थे

तुम्हारी हाथों में हथकड़ी

पैरों में बेड़ियाँ

बाँध देना चाहते थे

तब

हम ही आगे आए

मोर्चा संभाला

और

अभी तक

तुम्हारा हमारा

तपकरा,कोयलकारो,नगडी

हमारे हाथों में है

जब भी

दुष्ट प्रवृतियों की बुरी नज़र

तुम पर पड़ती है

हम ही आगे आते है

तुम्हारी रक्षा को

और तुम

हमारा हक

मारना चाहते हो

कहते हो, कि

ज़मीन पर हमारा कोई हक नहीं

क्यूँ कहते हो कि हम तुम्हे हक नहीं देंगे

याद करों जनी शिकार

जब तुम मदिरा के नशे में चूर

थक कर सो रहे थे

मुगल सैनिक

तुम्हारे नशे की आदत की आड़ में

तुम्हारे देश

तुम्हारी ज़मीन पर

क़ब्ज़ा के लिए

घात लगाकर

तुम्हे जान से मारने

तुम्हारी जन्म भूमि को

क़ैद करने के लिए

युद्ध के लिए

तुम्हारी धरती पर

अपने नापाक कदम रखे

और तुम

नशे में

सो रहे थे

तब

याद करो

हमने ही तो मर्दाने भेष में

मुगल सैनिकों को

युद्ध में

परास्त किया

भगा दिया उन्हे

अपने ज़मीन,अपनी मातृभूमि से

जिसकी याद में आज भी

बारह वर्षों के बाद

जनी शिकार की याद ताज़ा होती है

और तुम

थोड़े से पैसों...

हड़िया...

इंगलिस दारू..

की चाह में

अपनी ही ज़मीन को

टुकड़ों में बेच

खुद

बेघर हो रहे हो

क्या ज़वाब दोगे

अपने आने वाली पीढ़ियों को

कि थोड़ा सा शराब पिला

तुम्हारी ज़मीन..

दिकुओ ने हड़प ली

और तुम ..

शराब ही पीते रहे

ज़मीन चाह कर भी बचा नहीं पाये

और

हम बचाने आये तो कह दिए

कि तुम्हे कोई हक नहीं है

ज़मीन पर......

क्यों..